“एक समय था जब अटल बिहारी वाजपेयी की भाषण शैली के कारण मैं उनके सामने बोलने में संकोच करता था और आज सुषमा स्वराज भी मेरे अंदर वाजपेयी की तरह ही ‘कॉम्प्लेक्स’ पैदा करती हैं।” यह बात भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 2012 पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के अधिवेशन में समापन भाषण के दौरान कही थी।
निःसंदेह जब सुषमाजी बोलती थी तो सुनने वाले सिर्फ सुनते ही रहते थे। उनकी प्रखर वक्तव्य शैली और राष्ट्रहित चिंतन बेजोड़ था। संसद से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक में भारत का पक्ष रखने वाले उनके भाषण यादगार रहे हैं।
2015 में विदेश मंत्री की हैसियत से न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की 70 वीं महासभा के अधिवेशन को संबोधित करते हुए सुषमाजी ने जब पाकिस्तान को लताड़ लगाई तो पूरी दुनिया का ध्यान उन्हीं पर केंद्रित हो गया था। अपने भाषण में उन्होंने पाकिस्तान को खुलेआम आतंकवाद की फैक्ट्री कहकर संबोधित किया था और उनके इस भाषण की पूरे विश्व में चर्चा हुई थी। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि “पाक जो खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताता है दरअसल झूठ बोल रहा है। जब तक सीमापार से आतंक की खेती बंद नहीं होगी भारत पाकिस्तान के बीच बातचीत नहीं हो सकती। पाकिस्तान आतंकवाद की फैक्ट्री बन गया है, भारत ने उसके 2-2 आतंकवादी जिंदा पकड़े हैं। भारत हर विवाद का हल वार्ता के जरिए चाहता है किंतु वार्ता और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते।” सुषमा स्वराज ने कहा कि “इसी मंच (संयुक्त राष्ट्र) से पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पाक और भारत के बीच शांति पहल का एक चार सूत्रीय प्रस्ताव रखा था, मैं उसका उत्तर देते हुए कहना चाहूंगी कि हमें चार सूत्रों की जरूरत नहीं है, केवल एक सूत्र काफी है, आतंकवाद को छोड़िए और बैठकर बात कीजिए।”
2017 में पाकिस्तान के जम्मू-कश्मीर को पाने के मंसूबों पर उसकी क्लास लगाते हुए उन्होंने कहा “सीमा पार से आतंकी आया है, लिखित में हमारे पास उसका सबूत है। मैं एक चीज यहां बता दूं अगर पाकिस्तान ये समझता है कि इस तरह की हरकतें करके या इस तरह के भड़काऊ बयान देकर वो भारत को कोई हिस्सा हमसे छीन सकता हैं। तो मैं पूरी दृढ़ता और स्पष्टता से यहाँ ये कह देना चाहती हूँ कि आपका ये मंसूबा कभी कामयाब नहीं होगा। कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और अभिन्न हिस्सा रहेगा। इसीलिए ये ख्वाब देखना छोड़ दें।”
29 सितंबर 2018, संयुक्त राष्ट्र में भाषण सुषमा स्वराज ने अपने भाषण की शुरुआत बेहद ही दमदार और शानदार तरीके से की थी। उन्होंने कहा कि “वसुधैव कुटुंबकम्” की बुनियाद है परिवार और परिवार प्यार से चलता है, व्यापार से नहीं। परिवार मोह से चलता है, लोभ से नहीं। परिवार संवेदना से चलता है, ईर्ष्या से नहीं। परिवार सुलह से चलता है, कलह से नहीं। इसीलिए हमें (संयुक्त राष्ट्र) को परिवार के सिद्धांत पर चलाना होगा। इसी भाषण में सुषमा जी ने निर्भय होकर कहा था कि भारत और पाकिस्तान एक साथ आजाद हुए लेकिन आज भारत डॉक्टर और वैज्ञानिक पैदा कर रहा है तो पाकिस्तान आतंकवादी और जिहादी पैदा कर रहा है। भारत ने आईआईटी, आईआईएम, एम्स जैसे संस्थान बनाए तो पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन पैदा किए हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी जब पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने, और उनकी सरकार ज्यादा समय चल नहीं पाई । नई सरकार ने लोकसभा में विश्वासमत का प्रस्ताव रखा। 11 जून, 1996 को इस प्रस्ताव के विरोध में सुषमा स्वराज ने जो भाषण दिया, उसे आज भी याद किया जाता है। सुषमाजी ने उस दौरान सदन में कहा था- ‘धर्मनिरपेक्षता का बाना पहनकर, हम पर साम्प्रदायिकता का आरोप लगाकर, सब लोग एक हो गए हैं। अध्यक्ष जी हम साम्प्रदायिक हैं, हां हम साम्प्रदायिक हैं। क्योंकि हम वंदेमातरम गाने की वकालत करते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि हम राष्ट्रीयध्वज के सम्मान के लिए लड़ते हैं।’
23 मार्च 2011 यूपीए की सरकार के समय जब एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे थे, तब लोकसभा में विपक्ष की नेता के पद पर रहते हुए सुषमाजी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के लिए कहा था, ‘‘तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा? मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।’’ कुछ दिनों बाद इसी शेर को आगे बढ़ाते हुए मनमोहन सिंह के लिए कहा था, ‘‘मैं बताऊं कि काफिला क्यों लुटा, तेरा रहजनों (लुटेरों) से वास्ता था और इसी का हमें मलाल है।”
सुषमाजी का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला में हुआ था। उनका परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा था। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की और 1973 में सुप्रीम कोर्ट में वकील के तौर पर प्रैक्टिस शुरू की। 1975 में स्वराज कौशल से उनका विवाह हुआ । सुषमाजी ने पहला चुनाव 1977 में लड़ा था। तब वे 25 साल की थी। वे हरियाणा की अंबाला सीट से चुनाव जीतकर देश की सबसे युवा विधायक बनी। उन्हें हरियाणा की देवीलाल सरकार में मंत्री भी बनाया गया। इस तरह वे किसी राज्य की सबसे युवा मंत्री रही। 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में सुषमाजी दक्षिण दिल्ली से सांसद बनी थीं। इसके बाद 13 दिन की अटलजी की सरकार में उन्हें केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया। 1998 में वे दोबारा अटलजी की सरकार में मंत्री बनीं, लेकिन इस्तीफा देकर दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। 1999 में उन्होंने बेल्लारी लोकसभा सीट पर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। उन्होंने सिर्फ 12 दिन प्रचार किया। लेकिन सिर्फ 7% वोटों से हार गईं। 2000 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सदस्य चुनी गईं। जब उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद उत्तराखंड बना तो वे बतौर राज्यसभा सदस्य वहां भी सक्रिय रहीं। 2009 और 2014 में विदिशा से लोकसभा चुनाव जीतीं। 2014 से 2019 तक वे विदेश मंत्री रहीं और दुनियाभर में भारतीयों को उन्होंने एक ट्वीट पर मदद मुहैया कराई। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों के चलते 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया था।6 अगस्त को रात में दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हो गया ।
विदेशों में अपने भाषण का लोहा मनवा चुकी सुषमाजी भारत की संसद में भी अपनी बात दबंगता और सलिके के साथ रखती थी। उन्हें उनकी सौम्य मुद्रा के साथ-साथ विलक्षण वाकपटुता, हैरतअंगेज हाजिरजवाबी के लिए जाना जाता रहा है । वे अपनी मधुर आवाज में जब प्रभावी हिंदी बोलती तो संसद भवन हो या संयुक्त राष्ट्र, हर जगह जैसे छा जाती थी। कई मुद्दों पर वह आक्रामक जरूर होती थी, बावजूद इसके वह शब्दों के चयन में कभी गलती नहीं करती थी। सुषमाजी को भाषा की मर्यादा में ओजस्विता से परीपूर्ण भाषण देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
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