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स्त्रियों का विमर्श
शुरू होता है
पुरुषों के परामर्श से।
जिसमें आदिकाल से
स्त्रियों को बेचारी अबला
या फिर देवी धात्री
सर्वपूज्या कहा गया।
नवदुर्गा में कन्या पूजा
कर फिर उसे कोख में
मार डालते हैं।
‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’
अभियान चलाते हैं।
मुँह अंधेरे बसों
में,ऑटों में,कार में
करते हैं बेटियों का बलात्कार,
घर में सास-ननद
बनाती हैं बहू को
जलाने की योजना।
एक औरत उजाड़ देती है,
दूसरे का घर बनकर सौत।
घर में लड़की को काम सीखने की हिदायत देकर
माँ बेटों को खेलने के लिए कहती है।
कार्यालय में बॉस की नजरें भेदती है
देह को भेड़िया-सी,
बाजार में हर कोई देखना चाहता है..
औरत की देह के पार।
संबंधों के समीकरण भी
औरत की देह के इर्द-गिर्द बुने जाते हैं।
साहित्य के सर्वोच्च पर,
औरत की संवेदनाएं चढ़ जाती हैं
आदर्श की बलिवेदी पर।
औरत का विमर्श सिर्फ पुरुष की संवेदनाओं और पुरुष के सत्तात्मक तर्कों के बीच
ढूंढता है अपना अस्तित्व।
हे स्त्री अपने विमर्श को
तलाश कर सको तो फिर लिखना,
कितना दर्द है औरत होने का॥
#सुशील शर्मा
परिचय : सुशील कुमार शर्मा की संप्रति शासकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय(गाडरवारा,मध्यप्रदेश)में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) की है।जिला नरसिंहपुर के गाडरवारा में बसे हुए श्री शर्मा ने एम.टेक.और एम.ए. की पढ़ाई की है। साहित्य से आपका इतना नाता है कि,५ पुस्तकें प्रकाशित(गीत विप्लव,विज्ञान के आलेख,दरकती संवेदनाएं,सामाजिक सरोकार और कोरे पन्ने होने वाली हैं। आपकी साहित्यिक यात्रा के तहत देश-विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में करीब ८०० रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। इंटरनेशनल रिसर्च जनरल में भी रचनाओं का प्रकाशन हुआ है।
पुरस्कार व सम्मान के रुप में विपिन जोशी राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान ‘द्रोणाचार्य सम्मान-२०१२’, सद्भावना सम्मान २००७,रचना रजत प्रतिभा
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