स्त्री का होना

0 0
Read Time2 Minute, 48 Second
sushil
स्त्रियों का विमर्श
शुरू होता है
पुरुषों के परामर्श से।
जिसमें आदिकाल से
स्त्रियों को बेचारी अबला
या फिर देवी धात्री
सर्वपूज्या कहा गया।
नवदुर्गा में कन्या पूजा
कर फिर उसे कोख में
मार डालते हैं।
‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’
अभियान चलाते हैं।
मुँह अंधेरे बसों
में,ऑटों में,कार में
करते हैं बेटियों का बलात्कार,
घर में सास-ननद
बनाती हैं बहू को
जलाने की योजना।
एक औरत उजाड़ देती है,
दूसरे का घर बनकर सौत।
घर में लड़की को काम सीखने की हिदायत देकर
माँ बेटों को खेलने के लिए कहती है।
कार्यालय में बॉस की नजरें भेदती है
देह को भेड़िया-सी,
बाजार में हर कोई देखना चाहता है..
औरत की देह के पार।
संबंधों के समीकरण भी
औरत की देह के इर्द-गिर्द बुने जाते हैं।
साहित्य के सर्वोच्च पर,
औरत की संवेदनाएं चढ़ जाती हैं
आदर्श की बलिवेदी पर।
औरत का विमर्श सिर्फ पुरुष की संवेदनाओं और पुरुष के सत्तात्मक तर्कों के बीच
ढूंढता है अपना अस्तित्व।
हे स्त्री अपने विमर्श को
तलाश कर सको तो फिर लिखना,
कितना दर्द है औरत होने का॥

                                                                                                #सुशील शर्मा

परिचय : सुशील कुमार शर्मा की संप्रति शासकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय(गाडरवारा,मध्यप्रदेश)में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) की है।जिला नरसिंहपुर के गाडरवारा में बसे हुए श्री शर्मा ने एम.टेक.और एम.ए. की पढ़ाई की है। साहित्य से आपका इतना नाता है कि,५ पुस्तकें प्रकाशित(गीत विप्लव,विज्ञान के आलेख,दरकती संवेदनाएं,सामाजिक सरोकार और कोरे पन्ने होने वाली हैं। आपकी साहित्यिक यात्रा के तहत देश-विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में करीब ८०० रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। इंटरनेशनल रिसर्च जनरल में भी रचनाओं का प्रकाशन हुआ है।
पुरस्कार व सम्मान के रुप में विपिन जोशी राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान ‘द्रोणाचार्य सम्मान-२०१२’, सद्भावना सम्मान २००७,रचना रजत प्रतिभा

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

कड़वी बात

Mon Jun 26 , 2017
वो हिन्दू भी देते हैं ईद की मुबारकबाद, जिनके दिलों में मुहब्बतों के दीप जल रहे। वो मुस्लिम भी देते हैं दिवाली की बधाई, जिनके दिलों में अमनो-चैन के ख्वाब पल रहे॥ दिल के किसी कोने में अब भी इंसानियत जिंदा है, दुख इतना है कि चंद गद्दारों से पूरी […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।