कविता- हुए अठहत्तर साल कि हम आज़ाद नहीं हैं।

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ये आज़ादी के उन सपनों का आगाज़ नहीं है,
हुए अठहत्तर साल कि हम आज़ाद नहीं हैं।

भूल गए कि हमने कितने नर खोए हैं,
भूल गए कि हमने कितने सर बोए हैं!
भूल गए आधीन हुए थे हम दोज़ख के,
भूल गए कि शर्मसार ही सब के सब थे।

भूल गए सम्मान किसी का बचा नहीं था,
झेला जो अपमान किसी से छिपा नहीं था।
भूल गए हम काल कोठरी का अंधियारा,
भूल गए षड्यंत्र हमीं से फिर भी हारा।

भूल गए हम वीर भगतसिंह की कुर्बानी,
भूल गए बिस्मिल की निर्भय नाफ़रमानी।
भूल गए चन्द्रशेखर की आज़ाद रवानी,
भूल गए अशफ़ाक की खुद्दार कहानी।

भूल गए कि अनुसरण संस्कार नहीं है,
भूल गए दासत्व हमें स्वीकार नहीं है।

यादें भूले,
वादे भूले,
आँसू भूले,
सब कुछ भूले, उफ़! ज़रा एहसास नहीं है,
हुए अठहत्तर साल कि हम आज़ाद नहीं हैं।

भूल गए कि भूख से बढ़कर देशप्रेम था

भूल गए वीरों में अपने पागलपन था
भूल गए कि मौत से ऊपर आज़ादी थी
भूल गए शमशेर भी अपनी उन्मादी थी

भूल गए कि झुकना भर मंज़ूर नहीं था
मरना था मंज़ूर कपट मंज़ूर नहीं था
भूल गए कि परवशता स्वीकार थी
भूल गए कि मृत्यु में भी हार नहीं थी

भूल गए बेईमानी के प्रतिकूल लड़े थे
भूल गए कि छद्म हमेशा शूल लगे थे
भूल गए एकजुटता से ही ताकत आई
भूल गए मिलजुलकर ही आज़ादी पाई

भूल गए संकल्प हमारा आसमान था
भूल गए सम्बोधन में भी राम राम था

सपने भूले
अपने भूले
नस्लें भूले
सब कुछ भूले उफ्फ! ज़रा नाराज़ नहीं हैं।
हुए अठहत्तर साल कि हम आज़ाद नहीं हैं।

याद रहे सब साथ रहें और समरसता हो,
याद रहे आज़ादी में भी निर्भयता हो।
याद रहे अब परवशता का साया न हो,
याद रहे जो ख़ून बहा वो ज़ाया न हो।

याद रहे उन अमर शहीदों का जयकारा,
हँसते-हँसते सौंप दिया था जीवन सारा।
याद रहे अब कर्मठता है धर्म हमारा,
याद रहे आलस्य हमेशा हमसे हारा।

याद रहे कि राम-कृष्ण की थाती हैं हम,
याद रहे कि दीन-हीन के साथी हैं हम।
याद रहे कि योद्धा अपना हर जवान है,
याद रहे कि भाग्यविधाता हर किसान है।

याद रहे इतिहास हमारा स्वाभिमान है,
याद रहे इस विश्व गुरु की अलग शान है।
याद रहे ये देश हमारा हिन्दुस्तान है।।

जयहिंद

पंकज दीक्षित

कवि, गीतकार, इंदौर

परिचय-

पेशे से पत्रकार पंकज दीक्षित बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। अपने 30 साल के करियर में कई टीवी चैनल्स और राष्ट्रीय अख़बारों में संपादक के रूप में सेवाएँ देते हुए एक सहज, सकारात्मक पत्रकार के रूप में पहचान स्थापित की।

10 साल भास्कर समूह के न्यूज़ चैनल में संपादक के रूप में काम करने के बाद आपने मध्यप्रदेश छतीसगढ़ के न्यूज़ चैनल साधना न्यूज़ में ब्यूरो चीफ़ के रूप में सेवाएँ दीं। संपादक के रूप में आपने दबंग दुनिया, ग्लोबल हेराल्ड, और इंडिपेंडेंट मेल में और दूसरी पारी में साधना न्यूज़ में ब्यूरो चीफ़ के रूप में कार्य किया।

अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर पंकज दीक्षित वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ-साथ आप एक कवि, शायर, गीतकार के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। कविता के मंच पर साहित्य के माध्यम से भाषा और भाव को समृद्ध करना आपका उद्देश्य है।

देश के दिग्गज कवियों और शायरों जिसमें राहत इंदौरी, वसीम बरेलवी, गीतकर संतोष आनंद, सत्यनारायण सत्तन, सोम ठाकुर, डॉ. विष्णु सक्सेना, सरिता शर्मा, रमेश शर्मा, राजेंद्र राजन, अमन अक्षर, नीलोत्पल मृणाल, जैसे शीर्ष रचनाकारों के साथ आप कविता पाठ कर चुके हैं।

चूंकि पंकज दीक्षित एक मंझे हुए एंकर हैं इसीलिए कविता के मंच पर ख़ूब पसंद किए जाते हैं। आपका कविताओं के अलावा ग़ज़ल कहने का अंदाज़ भी अलहदा है। 

आपके काव्य-संग्रह ‘मैं एक और भी हूँ’ का विमोचन कुमार विश्वास के द्वारा किया गया है।

वर्तमान में आप साधना न्यूज़ मध्यप्रदेश में न्यूज़ हेड के रूप में कार्यरत हैं।

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