समिति में स्थापित हुआ पद्मश्री रामनारायण उपाध्याय जी का चित्र

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अक्षर देह के रूप में सदैव विराजित रहेंगे दादा रामनारायण-श्री उपाध्याय

इन्दौर। श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति में कालजयी साहित्यकारों की चित्र शृंखला में सोमवार को पदम् श्री रामनारायण उपाध्याय जी के चित्र का लोकार्पण हुआ।


श्रीमध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर ने उनकी 106वीं जयंती पर उनके चित्र का अनावरण समिति में किया और श्रद्धापूर्वक कालजयी साहित्यकार दीर्घा में उन्हें स्थापित किया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार श्री नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने कहा कि दादा का आशीर्वाद उन्हें मिलता रहा। उनका कृतित्व और व्यक्तित्व इतना विस्तृत है, जिसे शब्दों में समेटा नहीं जा सकता। अब उनके सजीव न रहने पर यही कहना पड़ रहा है कि ’देह से विदेह हो गए, राई से पर्वत बने, नदी से सागर और अक्षरदेह के रूप में सदैव हमारे बीच में जीवंत रहेंगे।’ बड़वाह से आये साहित्यकार श्री शिशिर उपाध्याय ने कहा कि वो अपनी निमाड़ी भाषा और संस्कृति के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर गये। आदिवासी कला परिषद की उन्होंने स्थापना की। वो छोटी उम्र में भी स्वतंत्रता संग्राम के गीत रचकर गाया करते थे।

खंडवा से ही आये श्रीकांत साकल्ले ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दुबला-पतला खादी पहनने वाला व्यक्ति जमीन से जुड़ा रहा। वरिष्ठ कवि सदाशिव कौतुक ने कहा कि उनकी पहली पुस्तक 1984 में प्रकाशित की, भूमिका उन्होंने लिखी और पुस्तक का लोकार्पण भी किया था। दादा के ठहाके भला कौन भूला सकता है। प्रभु त्रिवेदी ने कहा ’चिट्ठी पत्री’ उनकी कृति एक अमर कृति है। प्रदीप नवीन ने उनसे संबंधित संस्मरण सुनाते हुए कहा कि दादा कहते थे कि गीत पढ़ने की नहीं जीने की वस्तु है। श्रीधर बर्वे ने निमाड़ी साहित्य को उनके द्वारा दिये गये योगदान को सराहा गया। श्रीमती जय श्री उपाध्याय ने संस्मरण सुनाते हुए उनसे प्राप्त आशीर्वाद के प्रसंग को बड़े भावुक होकर सुनाया। उनकी पंक्तियों को लोग गुनगुनाते रहे ’जमीन मुझे अच्छी लगती है, आसमां मुझे भाता है…।’ समिति के प्रधानमंत्री अरविन्द जवलेकर ने कहा कि इस कालजयी साहित्यकार के चित्र का अनावरण करके समिति गौरवान्वित है और उनके प्रति आदर व्यक्त कर आने वाले पीढ़ी के लिए संदेश दिया है। हमारा प्रयास है कि हम ऐसे साहित्यकारों को हमेशा याद करते रहें। कार्यक्रम का संचालन संक्षिप्त में उनके जीवन वृत्त को बताते हुए हरेराम वाजपेयी ने किया।
20 मई, 1918 को खंडवा के पास छोटे से गॉंव कालमुखी में जन्में पंडित रामनारायण उपाध्याय, माखनलाल चतुर्वेदी जी के बाद दादा रामनारायण के रूप में विख्यात हुए। बचपन से ही उन्हें साहित्य से लगाव रहा। स्वतंत्रतता संग्राम के संदर्भ में वो रचनायें लिखते थे, गुनगुनाते थे।

इस अवसर पर खंडवा से डॉ. नीरज दीक्षित, श्रीमती चंचला साकल्ले, डॉ. मीना साकल्ले, डॉ. अनुराधा शर्मा, संध्या पगारे, डॉ. अरुण कुरे, मनोज विराज साकल्ले, घनश्याम यादव, राजेश शर्मा, उमेश पारीख, त्रिपुरारीलाल शर्मा, बालकृष्ण भट्ट, डॉ. अर्पण जैन, छोटेलाल भारती, प्रणव व्यास आदि काफी संख्या में उपस्थित रहे।

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