कितना साले और बहनोई
में प्रेम भाव था।
दोनो का देवलोक गमन
तीन दिन में हो गया।
न उन्होंने एक दूसरे को
एक साल से देखा।
पर जाते जाते अपना
स्नेहप्यार सबको दिखा गये।।
दोनो ही मुझे बहुत प्यारे थे
मेरे लिए आत्मसम्मानीय थे।
दोनो ही गोलालरिया जैन
समाज में प्रतिष्ठित थे।
दोनो की आत्मनीयता का
कोई जवाब नहीं था।
मिलते थे जो भी इनसे
वो उनके ही हो जाते थे।।
मेरे तो वो मामा मौसाजी थे।
पर मेरे लिए दोनो पिता जैसे थे।
क्या नहीं किया इन लोगों ने।
अपने परिवार और समाज के लिए।।
दोनों के प्रति श्रध्दा
सुमन अर्पित करता हूँ।
और देता हूँ ह्रदय से
दोनो को श्रध्दांजलि।
उठ गया सिर पर से
अब बड़ों का साया।
हो गये अनाथ अब हम
उनके अचानक जाने से।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)