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आज फिर वो फूट-फूट के रोया,
सब्र का बांध था, टूट ही गया।
कब तक संभालता वक्त के थपेड़ों से,
बार बार ठोकरें लगी टूटा बिखर गया।
बहुत मजबूत वजूद था उसका,
गैरों में कहाँ दम,ठोकर तो अपनों की थी।
जब भी मिलता था गमों से राह में,
मुस्करा के दिल की जेब में सहेज लेता।
पीर मिले या अश्क,जज्ब कर लेता था सीने में,
लब औ’ नयन में मुस्कान सजाए।
जहाँ कहीं भी उसके कदमों की होती आहट,
फिजाओं में बहारां ही बहारां होती थी।
पर संभल नहीं सका अपनों की ठोकर से,
टूटा-टूटकर बिखर गया॥
#डॉ. नीलम
परिचय: राजस्थान राज्य के उदयपुर में डॉ. नीलम रहती हैं। ७ दिसम्बर १९५८ आपकी जन्म तारीख तथा जन्म स्थान उदयपुर (राजस्थान)ही है। हिन्दी में आपने पी-एच.डी. करके अजमेर शिक्षा विभाग को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक रुप से भा.वि.परिषद में सक्रिय और अध्यक्ष पद का दायित्व भार निभा रही हैं। आपकी विधा-अतुकांत कविता, अकविता, आशुकाव्य आदि है।
आपके अनुसार जब मन के भाव अक्षरों के मोती बन जाते हैं,तब शब्द-शब्द बना धड़कनों की डोर में पिरोना ही लिखने का उद्देश्य है।
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