तुमको वंदन हे रघुनंदन!
प्रभु अभिनंदन है, अभिनंदन,
ठाढ़े करज़ोर करत वंदन,
अभिनंदन हे दशरथनंदन!
न जाने ये कैसी परीक्षा थी!
सदियों-सदियों से प्रतीक्षा थी,
दो दर्शन कौशल्यानंदन,
प्रभु अभिनंदन है, अभिनंदन।
दो-दो वनवास दिया जग ने,
पुरुषोत्तम रूप जिया तुमने,
तेरे अपराधी करते क्रंदन,
प्रभु अभिनंदन है, अभिनंदन।
है धन्य भाग्य हर्षित हर मन,
लिए सजल नयन गर्वित हैं जन,
सरयू तट की रज-रज चंदन,
प्रभु अभिनंदन है, अभिनंदन।
हम भाव पुष्प करते अर्पण,
व्रत लेते कर मन को दर्पण,
तुम दया करो बन स्पंदन,
प्रभु अभिनंदन है, अभिनंदन।
तेरे दिव्य रूप के अभिलाषी,
कब से हैं सारे जगवासी,
कर रहा है तेरा जग वंदन,
प्रभु अभिनंदन है, अभिनंदन।
#सुधाकर मिश्र “सरस”
इंदौर, मध्य प्रदेश