साहित्य का मूल धर्म है सबका भला करना – डाॅ. पद्मा सिंह
इंदौर 10 जून। साहित्य का मूल धर्म है सबका भला करना। रचनाकारों को इस मूल धर्म को ध्यान में रखकर रचनाधर्मिता करना चाहिए। भाषा अपनापन देती है और दूरियां भी इसलिए भाषा के उपयोग में सावधानी रखना चाहिए।
यह बात वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. पद्मा सिंह ने कही। वह विचार प्रवाह साहित्य मंच द्वारा शनिवार शाम आयोजित पुरस्कार वितरण और रचना पाठ कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन दे रही थीं। मुख्य अतिथि शिक्षाविद डाॅ. संगीता भारूका ने नारा लेखन का महत्व बताते हुए कहा कि नारा उत्साह का संचार करता है। आजादी के आंदोलन से लेकर आज तक सभी आंदोलन में नारों की बड़ी भूमिका रही है। विशेष अतिथि वरिष्ठ लेखिका श्रीमती अमिता मराठे थीं।
अतिथियों को स्मृति चिन्ह श्रीमती माधुरी व्यास, डाॅ.दीपा मनीष व्यास, डाॅ. प्रणव श्रोत्रिय, श्रीमती राधिका मंडलोई ने प्रदान किये। संचालन मंच के अध्यक्ष मुकेश तिवारी ने किया। आभार महासचिव श्रीमती अर्चना मंडलोई ने माना। पर्यावरण दिवस पर आयोजित नारा प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। मौजूद रचनाकारों ने पिता पर लिखी अपनी रचनाओं का पाठ किया।