राजनीति का धर्म हो चाहे धर्म की राजनीति, भ्रष्टाचार का अंत हो चाहे अंत तक भ्रष्टाचार, लोक का उत्थान हो या स्व उत्थान में लोकाचार का शामिल होना, जन तंत्र की मज़बूती हो चाहे तंत्र की मज़बूती का फ़ायदा लेना, अपराधियों पर नकेल हो चाहे नकेल डालकर अपराध करवाना, संस्कृति के उन्नयन की बातें हों चाहे अपने उन्नयन को सांस्कृतिक ठहराना, सब कुछ किताबों में दर्ज क़िस्सों की तरह या कहें फ़िल्मों में चलते दृश्य के जैसा ही हो रहा है आजकल राजनीति में भी।
जनता का विश्वास तब टूटता नज़र आता है जब भरोसे वाले कन्धे भी दगा देने लग जाते हैं।
ऐसे ही हालातों की शिकार इस समय दिल्ली की जनता भी हो रही है।
एक आन्दोलन चला, जिसका ध्येय भ्रष्टाचार-मुक्त भारत की संकल्पना को मूर्त रूप देना और फिर जन लोकपाल की स्थापना करना था, जनता ने विश्वास किया। दिल्ली में स्थापित राजनैतिक पार्टियों को किनारे करते हुए एक ऐसे राजनैतिक दल को सत्ता सौंप दी, जिसका उदय ही उस समय हुआ जब अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करके देश को जागरुक किया।
सत्ता के हाथ में आते ही आन्दोलन के पुर्जे ही ढीले होने लग गए। आन्दोलन से एकजुट हुए विभिन्न क्षेत्रों के मुखियाओं के बीच सत्ता की रमणिका सुंदरी ने आंदोलनकर्ताओं को सत्ताजीवी बना दिया।
पहली दफ़ा जब दिल्ली ने विश्वास किया, उसके थोड़े समय बाद ही आंदोलनकर्ताओं के बीच से विश्वास गायब हो गया। फिर धीरे-धीरे विश्वास के साथ-साथ योगेन्द्र भी टूटने लगे। और न जाने कितने साथी अलग-थलग होने लग गए। कारण साफ़ है, जहाँ सत्ताजीवी होने का भाव जागृत भी हो जाए तो आन्दोलनजीवी स्वभाव घुटन महसूस करता है। येन-केन-प्रकारेण सत्ता सुख में लिप्त सत्ताधीशों ने कार्यकाल पूरा करके फिर चुनाव में दस्तक दी और जनता को फिर ख़्वाब बेचने शुरु कर दिए। ख़्वाबों का पुलिन्दा थमा कर जनता को नए तरीके से लुभाने की कवायद हुई, जनता फिर झाँसे में आ गई और इस बात पर विश्वास कर लिया कि सत्ताधीशों का ध्येय भ्रष्टाचार मिटाना है, पर कहते हैं न कि जब रणनीति में राजनीति का प्रवेश हो जाता है तो फिर धर्मनीति मृत्यु को प्राप्त कर लेती है। उसी तरह अब लुटियन की दिल्ली में केवल राजनीति रहने लगी है।
राजनीति के चश्मे से देखने पर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सत्ता सुन्दरी बहुत आनंद में दिखाई दे रही है, एक तरफ़ दो-दो मंत्री जेल का आनंद ले रहें हैं और मज़े की बात तो यह है कि दोनों ही मंत्रियों पर आरोप भ्रष्टाचार के ही लगे हैं। एक मंत्री पर मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज है तो दूसरे पर सीधे भ्रष्टाचार का ही।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली की सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने गिरफ़्तार कर जेल यात्रा करवाई है। बताया जाता है कि साल 2017 में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने सत्येंद्र जैन के ख़िलाफ़ प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट के तहत केस दर्ज किया था। इसमें सत्येंद्र जैन पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे थे। ईडी जिस मामले की जांच कर रही है, वह इसी पर आधारित है।
आरोप है कि प्रयास इंफोसॉल्यूशंस, अकिंचन डेवलपर्स, मंगलायतन प्रोजेक्ट्स और इंडो मेटल इंपेक्स प्राइवेट लिमिटेड को 4.63 करोड़ रुपये मिले थे। बाद में जब ईडी ने जांच शुरु की, इन कंपनियों को शेल कंपनियों से 4.81 करोड़ रुपये मिलने का दावा किया। सत्येंद्र जैन का इन कंपनियों पर निदेशक या अधिक शेयर की वजह से नियंत्रण था। इन कंपनियों को शेल बताते हुए तब जांच एजेंसी ने कहा था, इनके पास ये पैसे कहां से आए, सत्येंद्र जैन इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दे सके। ईडी ने ये भी कहा था कि इस धनराशि का उपयोग दिल्ली और उसके आसपास भूमि की ख़रीद को लिया गया कर्ज़ अदा करने के लिए किया गया। आरोप है कि ये रकम कोलकाता एंट्री ऑपरेटरों को हवाला के ज़रिये पहुंचाई गई नकदी के बदले इन मुखौटा कंपनियों के माध्यम से दी गई थी।
इसके बाद दिल्ली सरकार को दूसरा झटका तब लगा जब अरविन्द केजरीवाल के सबसे करीबी माने जाने वाले व्यक्ति और सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया नप गए।
सीबीआई और ईडी ने आरोप लगाया है कि नई आबकारी नीति बनाते समय अनियमितता की गई थी और लाइसेंसधारकों को अनुचित लाभ दिया गया। मार्च 2021 में मनीष सिसोदिया ने नई आबकारी नीति का एलान किया और उसके बाद से ही व्यापारियों से साठ-गांठ करने के आरोप लगने लगे। दिल्ली शराब कांड मामले में ईडी की चार्जशीट में सिसोदिया पर 292 करोड़ के स्कैम का ज़िक्र किया गया है।
दोनों ही मामलों में दिल्ली में बैठकर ईमानदारी का प्रमाण पत्र बाँटने वाली केजरीवाल सरकार कटघरे में खड़ी हुई है। जनता बेचारी इस बात से हैरान है कि ईमानदारी का ढोल पीटने वालों पर भी सत्ता का मद चढ़ गया या फिर सत्ता हथियाने के लिए ईमानदारी का ढोंग कर जनता के साथ खिलवाड़ किया गया।
लुटियन का इतिहास भी राजनीति के रंग से ही लिखा गया है। इतिहास इस बात की गवाही भी देता है कि निर्वासित पुत्रों को अपने अधिकार की भूमि भी न देने के कारण विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध भी कुरुक्षेत्र में ही हुआ है। उसी महाभारत ने सत्ता के संग्राम का अध्याय लिखकर गीता जैसे वचनामृत को जन्म दिया, जिसे आज विश्व विद्यालयों में सर्वश्रेष्ठ मैनेजमेंट लेसन के रूप में पढ़ाया जा रहा है।
बहरहाल, इन सबके बाद भी टूटे हुए भरोसे से खोखली हो रही राजनीतिक शुचिता के बारे में सोचना आवश्यक हो गया है। दिल्ली की सरकार तो एक ऐसा उदाहरण भी बनने जा रही है जहाँ जन्म देने वाला पिता भी स्वयं को लज्जित मान कर चढ़े हुए राजनैतिक रंग के चलते ग्लानिभाव का बोध कर रहा है। सरकार या कहें आम आदमी पार्टी का जन्म ही उस आंदोलन से हुआ, जिसका ध्येय भ्रष्टाचार का समूल नाश था पर आज के हालात तो भ्रष्टाचार में सर्वांगीण लिप्तता पर आ ठहरे हैं।
केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली सरकार के काबीना मंत्री रहे लोग ही अपने गिरेबाँ पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से बच नहीं ला रहें हैं तो यकीनन अन्य नेताओं के हाल तो ईश्वर ही जाने कि कैसे होंगे!
जब सरकार की कोर टीम या कहें राजनैतिक दल का कोर ही गले-गले तक भ्रष्टाचार से घिरा हो तो शुचिता की बात करना भी बेईमानी मानी जाएगी।
आज दिल्ली ख़ुद को कितना ठगा हुआ मान रही है जब भरोसे वाले चार भी अब भरोसा तोड़ रहे हैं। अन्ना हज़ारे ने भी सोचा न होगा कि जिन लोगों को अपने भ्रष्टाचाररोधी आंदोलन का मुख्य किरदार बनाया, वही आज भ्रष्टाचार के बड़े ठेकेदार हो रहे हैं। जिन लोगों को ख़ज़ाने की हिफ़ाज़त के लिए चुना था, क्योंकि उनके चेहरे पर ईमानदारी का नक़ाब डला हुआ था, वही आज ख़ज़ाने को लूटने में संलिप्त हो रहे हैं। ऐसे में लुटियन के भाग्य पर तरस के सिवा कुछ आ नहीं सकता।
इसी ईमानदारी का ढोल पंजाब में भी ख़ूब पीटा गया, अंततः सत्ता आते ही शराबखोर को राजगद्दी सौंप कर केजरीवाल ने इति श्री कर दी। जिस तरह दिल्ली के भाग्य में अपराधों का पनाहगार बनना आया, वैसा ही कुछ पंजाब के साथ न हो जाए। इस समय सत्ताधीशों की उड़ान के पंखों पर तेज़ उड़ने की चाह टंगी होने से शुचिता, मानकता, मानवीयता और ईमानदारी टके सेर बिकने पर आमादा है। राजनीति में किस पर भरोसा करें यह कहना अब अक्षरशः सत्य भी है क्योंकि इनका नाम ही ईमानदार था, आज वही बेईमानी के राजदूत बने हुए हैं।
आम चुनाव बहुत पास आ रहे हैं, सम्भवतः केजरीवाल अन्य राज्यों में सपनों के सौदागर के रूप में पहुंचेंगे, मुफ़्त की दाल-रोटी की पेशकश करेंगे, पर दिल्ली के दामन के दाग़ छुपा नहीं पाएंगे।
जिस तरह दिल्ली ठगी गई है उससे उम्मीद तो नहीं लगती कि फिर से केजरीवाल दिल्ली से चुने जाएँ, आखिरकार दिल्ली को यह भी सोचना चाहिए कि राजनैतिक शुचिता की बातें बस बातें हैं, निरा खोखली। दिल्ली को भी अपना फ़ैसला लेना चाहिए, ताकि दिल्ली समृद्ध दिल्ली रहे, ठगस्तान न बन जाए।
#डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं स्तंभकार, इंदौर
[ लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।]