गीता का सार

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कुरुक्षेत्र की भूमि पर गिरा हर वो शख्स कृष्ण थे,
गदा धनुष विलीन भाल देह रक्त कृष्ण थे।
पार्थ के सारथी कर्ण के भी मित्र थे ।
युधिष्ठिर की प्रतिज्ञा तो दुर्योधन का लक्ष्य थे ।

पांडवों की जीत कौरवों की हार थे
रण क्षेत्र में चारों तरफ भगवान ही भगवान थे
द्रौपदी के अपमान का वहीं तो सामान थे,

द्रोण की वो शक्ति कृष्ण
गुरुओं की भक्ति कृष्ण
माँ की आँखों से झलकते अक्स भी तो कृष्ण थे

गीता ज्ञान, धर्म स्थापना,
अधर्म का विनाश भी तो कृष्ण थे।
किस किस को मैं गिनाऊ,

धर्म युद्ध का हर किरदार ही तो कृष्ण थे
काल भी कृष्ण थे महाकाल भी कृष्ण थे ।

कवि हर्षित अशोक मालाकार

बांगरदा (खरगोन)

परिचय-

हर्षित मालाकार

हर्षित अशोक मालाकार गांव में पले बड़े है । उस छोटे गांव से लेकर इन्होंने अपनी मेहनत से मुंबई तक का सफर तय किया इन्होंने मिर्ची प्लस में कई सारी कहानियां लिखी और मुंबई में मराठी नाट्य में इन्होंने बतौर राइटर काम किया है। अपने गांव बांगर्दा का नाम रोशन किया है।

इन्होंने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय ( चमेली देवी कॉलेज ) से कंप्यूटर इंजीनियरिंग का अध्ययन किया और इंदौर के कई कॉलेज में बतौर संचालक के रूप व एक कवि के रूप में मंच साझा किए है ।

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