वहां पहुँचकर मन व्यथित हो गया,दुबली-पतली कृशकाय माँ का हृदय फट ही चुका था। मात्र ३०-३५ वर्ष की उम्र में असीम वेदना-पहले पति और अब 15 वर्षीय होनहार बेटी ने फांसी लगाकर जान दे दी थी।
वो हमारे घर काम करती थी। खबर लगी कि उसकी बेटी ने आत्महत्या कर ली है,तो मन-ही-मन में उसकी बेटी को कोस चुकी थी-कैसी बेटी होगी,मरने से पहले एक बार भी न सोचा कि `माँ` का क्या होगा`..क्या कारण रहा होगा? दसवीं की परीक्षा में तो उसने पिच्यासी प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे। अभी कल ही तो मुझे बताया था,हो सकता है,चरित्रहीन हो..अनेक विचार मन को विचलित कर रहे थे।
सूजी आँखें और अस्त-व्यस्त-सी वो आकर मेरे पास बैठ गई। वो रो रही थी-दिलासा देने के लिए मेरे हाथ बढ़े ही थे-कि वो बोल पड़ी-`मैडम जी,गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है। मेरी बेटी कई दिनों से बीमार थी,इलाज भी करवाया था,कल ही डॅाक्टर ने उसे भर्ती करने का कहा था। वो जानती थी माँ के पास इलाज एवं दवाई के पैसे नहीं है,सो उसने जान दे दी। मैडम जी,मेरी बेटी बहुत अच्छी थी। उसने मेरी मजबूरी को देखकर अपनी जान दे दी। वो मुझ गरीब की शान थी।`
वो मुझसे कहती जा रही थी और मैं अपनी छोटी सोच को लेकर शर्मिन्दा और निरुत्तर थी।
परिचय : श्रीमती अर्चना ललित मंडलोई इंदौर में गोपुर कालोनी में रहती हैंl १९६९ में इंदौर में ही आपका जन्म हुआ है और एमए(हिन्दी) सहित एमफिल(हिन्दी) करने के बाद पीएचडी जारी हैl आप कविता,लघुकथा लिखने के साथ ही पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी करती हैंl समाजसेवा तथा सामाजिक गतिविधियों में भी लगी रहती हैंl विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानी व कविता प्रकाशित हुई है।आपको नाट्य मंचन का अनुभव है