वो हमारी चाह में सारा जीवन बिता गए।
आल के लिए अपनी सारी खुशियाँ लुटा गए।।
ताउम्र हमारे लिए रात व दिन एक कर दिए।
हम बदनसीब ठहरे जो अपना फर्ज़ भी अदा न किए।।
हमनें उनको उनकी चाहतों का कैसा सिला दिया।
जो सोचा था उन उम्मीदों को अब हमनें विदा किया।।
वो हमारी चाह में दुनियाँ से फ़ना हो गए।
हमारी चाहत के किस्से अधूरे के अधूरे हो गए।।
उनकी हयाते ज़ीस्त में हमनें हर सुख को पा लिए।
हमने उनकी हयाते ज़िन्दगी में कुछ भी तो न किए।।
अरमाँ थे जो दिल में पाले वो अधूरे रह गए।
रहमान बाँदवी अब कोरे कागज़ कोरे ही रह गए।
#अब्दुल रहमान