
तेरे साथ गुज़ारे लम्हात,
मेरी क़ीमती जागीर है ।
तेरे मुस्कुराकर देख़ना ही,
मेरे ख़्वाबों की ताबीर है ।।
तेरे बिन अधूरा सा हूं ,
मंज़िलें नहीं मिलती है ।
निकलता हूं सफ़र पर,
मुझे राहें नहीं दिखती है ।।
पहली ख़ुशी ज़िंदगी की,
आख़िरी ग़म तू है ।
धड़कनों में मेरी धड़के,
एक सनम तू है ।।
दिल से खेलने में मेरे,
तू बहुत ही माहिर है ।
मेरे इश्क को मत परख़,
ये तो जगज़ाहिर है ।।।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।