जो मोहब्बत को दूर से देखता है।
उसे ये बहुत अच्छी लगती है।
और जो मोहब्बत करता है
उसे ये जन्नत लगती है।।
जिंदगी का सफर
यूँ ही कट जायेगा।
जीवन का उतार चड़ाव भी
पुरुषात से निकल जायेगा।
पढ़ना है यदि खुदको तो
दर्पण के समाने खड़े होना।
और स्वयं की मंजिल को
अपने अंदर बार बार देखना।।
आज के दौर में सबको
राम श्याम चाहिए।
पर खुद सीता राधा और
मीरा बनने को तैयार नहीं।
वाह री दुनियां और इसे लोग
कुर्बानी सामने वाले से चाहिए।
और यश आराम खुद को
बिना परिश्रम के चाहिए।।
मेरी दिलकी पीड़ा को
कभी पड़कर देखो।
दिलकी गैहाराईयों में
तुम उतरकर देखो।
तुम्हें प्यार की जन्नत
और बिछी हुई चांदनी।
हरेभरे बाग में खिले हुये
गुलाब नजर आयेंगे।।
किसी दिल वाले से
दिल लगाकर देखो।
अपनी भावनाओं को
उसे बताकर तुम देखो।
वो प्यार के सागर में
तुम्हें वो डूबो देगा ।
और एक कमल तुम्हारे
दिलमें खिला देगा।
तब तुम्हें उसकी और अपनी
मोहब्बत का एहसास होगा।।
कभी खुदमें सीता का
रूप तुम देखोगी तो।
तुम्हें अंदर से राम ही
राम नजर आयेंगें।
और मोहब्बत के दीप
तुम्हारे दिलमें जल जायेंगे।
तब तुम्हारी मोहब्बत को
लिखने संजय आयेगा।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन “बीना” मुंबई