दिलकी पीड़ा को नारी
भली भाती जानती है।
आँखों को आँखों में
पढ़ना भी जानती है।
इसलिए तो मोहब्बत
नारी से शुरू होकर।
नारी पर आकर ही
समाप्त होती है।।
मोहब्बत होती ही कुछ
इसी तरह की।
जो रात की तन्हाई
और सुहाने मौसम में।
उसे बैचैन कर देता है
और अंदर से जलाता है।
तभी तो मेहबूब का उसे
बेताबी से इंतजार रहता है।।
कागज पर लिखकर ही
तो मोहब्बत जवा होती है।
दिल की बातों को
कागज पर लिखकर।
अपने मेहबूब को
हम भेज देते है।
और अपनी मोहब्बत का
इजहार ख़त से करते है।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन “बीना” मुंबई