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आंखों में आंखें डालकर
सच को सच दिखाता आईना
चेहरे पर लगे हों मुखोटे हजार
क्षणभर में हटा देता आईना
बड़ी खामोशियत से कहता
लेकिन कौन सुनता बात आईना
हर बुराई से पर्दा उठाता
फिर पत्थर खाकर टूटता आईना
टुकड़ों -टुकड़ों में टूटता-बिखरता
लेकिन तब भी मुंह चिढ़ाता आईना
इंसान बनाले अपने हृदय को आईना
तो खुद भी देखे, औरों को भी दिखाये आईना
आंखों में आंखें डालकर
सच को सच दिखाता आईना
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
आगरा, उत्तर प्रदेश
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