प्रदेश में चुनाव होने वाले थे । मुख्यमंत्रीजी के स्वभाव में अचानक से बदलाव होने लगा । वे मरखने सांड से सीधे भोली भाली दुधारू गाय बन गये । पिछले पांच साल से वे पुलिस के बल पर राज कर रहे थे । ये तो जनता ही जानती है कि पांच साल कैसे गुजरे…। पत्रकारों, लेखकों की कलमों को पुलिसिया मुकदमों से कैसे तोड़ा गया था, ये कलमकार ही जानते हैं, हां कुछ दरबारी भांड मलाई जरूर चाटते रहे ।
मुख्यमंत्री जी ने अपने पालतू चमचों से सीधे संपर्क करना शुरू कर दिया । अपने खास गुंडों, पुलिस अधिकारियों, व्यापारियों, राजनीतिक लोगों व भटके युवा बेरोजगार छात्रों, दल बदलू नेताओं की आवभगत में सरकारी पैसा पानी की तरह बहाया जाने लगा ।
लेकिन इस दामादी खुशामद में पत्रकारों व लेखकों को कोई न्योता नहीं दिया गया । इस बार पता नहीं क्यों, दरबारी भांडों को भी दरकिनार कर दिया । शायद मुख्यमंत्री जी जान चुके थे कि अब ये कलमकार जाग चुके हैं, ये कलम अब न बेचेंगे ।
मुख्यमंत्री जी का निजी सचिव विपक्षी पार्टी के मुखिया से संपर्क साधने में लग गया, क्योंकि इस बार मुख्यमंत्री जी जाने वाले थे । आखिर लट्ठ के बल पर राज कितने दिनों तक किया जा सकता है ।
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा