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नहीं लगा पाओगे
इसका अनुमान
कौन है जहान में
कितना परेशान
किसी के जीवन में
है कितनी खुशी
अंदाज़ा ना लगाना
देख उसकी हँसी
चाहत नहीं होती
फिर भी चाहना पड़ता है
ग़मों को छिपाकर
मुस्कुराना पड़ता है
बहते हैं उनके अश्रु भी
जो सुख में जीवन जीते हैं
दिखें ना आँसू जिनके
वो हर पल बहुत रोते हैं
आलोक कौशिक
(साहित्यकार एवं पत्रकार)
बेगूसराय (बिहार)
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