न्यू इंडिया में असंगठित क्षेत्र

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सन् 2019के लोकसभा चुनाव के दौरान से भारत में एक शोर सा चारों ओर से राजनेताओं के द्वारा लगातार किया जा रहा है न्यू इंडिया , न्यू इंडिया का।
हम सभी को 15 अगस्त 1947 से प्राप्त आजादी शायद अब बहुत बूढ़ी और पुरानी हो गई है ।अब उसका भी नवीनीकरण किया जा रहा है। किसी भी देश का हर सपना मजबूत आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है क्योंकि रुपया ही अमीरी और गरीबी की परिभाषा को सत्यता प्रदान करता है। हर देश की अर्थव्यवस्था उस देश के संगठित और असंगठित क्षेत्र के द्वारा किए जा रहे हैं कार्यों से प्राप्ति आमदनी से होती है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत देश की अर्थव्यवस्था में 50% से भी अधिक का योगदान असंगठित क्षेत्र के लोगों के द्वारा होता है जोकि देश का लगभग 90% है से प्राप्त होता है ।इस क्षेत्र में ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र से छोटे और भूमिहीन किसान, मजदूर, पशुपालक, बुनकर, निर्माण एवं आधारभूत संरचना में कार्यरत श्रमिक आते हैं जो रोजगार की खातिर शहरों की ओर पलायन करते हैं और वहां पर सफाई कर्मी, सब्जी एवं फल विक्रेता, रेहड़ी पटरी वाले, घरेलू नौकर, माली, ड्राइवर आदि ।यह शहरों की हाई प्रोफाइल लाइफस्टाइल को चलाने वाली सांस होते हैं ।जो अकसर अनपढ़ या कम पढ़े लिखे होते हैं। एक और शहर के लोग ज्यादातर अंग्रेजी भाषा और जीवन शैली को मानने वाले होते हैं उनके बीच यह काम करते हैं और दोयम दर्जे का जीवन ज्ञापन करते हैं और शहर के चकाचौंध में अपने अस्तित्व को स्थापित नहीं करने वाले होते हैं । ज्यादातर लोगों को कम वेतन और कम सुविधाओं पर अपनी जरूरतों के अनुसार काम पर रख लिया जाता है। इनकी कोई स्थाई आमदनी नहीं होती है ।अतः: उनका जीवनयापन भगवान भरोसे ही चलता है या सरकारी भीख पर निर्भर करता है। इनके लिए शिक्षा और स्वास्थ की बेहतर सुविधाएं एक सपना मात्र होती है। उनका रहन-सहन बहुत ही अधिक कष्टदायक होता है।
यह उजले इंडिया की बहुत ही दयनीय स्थिति को प्रर्दशित करता है जिससे न्यू इंडिया के सपने को साकार करना में बहुत ही कठिनाईयां है का पता चलता है। देश का सबसे बड़ा तबका इसी क्षेत्र विशेष से आता है जिसके नाम पर सरकारें गरीबी हटाओ का नारा देकर अपनी सत्ता को हासिल करती है लेकिन वह खुद इतने अमीर हो जाते है कि उस आमदनी से उनकी सात पीढ़ियां ऐशों आराम का जीवन ज्ञापन करने लगती है किंतु इस क्षेत्र के लोग दूसरी पीढ़ी के बढ़े होने तक खुद जिंदा रह सकेंगे यह भी उन्हें पता नहीं होता है। यह लोग देश के हर निर्माण का आधार होते हुए भी इनका जीवन लगभग शून्य ही रहता है।
मार्च 2020 में अचानक हुए संपूर्ण लॉकडाउन ने इस क्षेत्र की हकीकत को नंगा कर दिया है। सारे के सारे सरकारी चोंचले और घोषणाएं एवं आंकड़े फेल हो गए थे। विश्व भर से पलायन की इतनी भयावह तस्वीरें और कहीं से देखने को नहीं मिली होंगी। हजारों में अपनी जान गंवा दी लेकिन सरकार आंखों पर मास्क लगाकर इनकी गरीबी से सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रही। वर्तमान में दूसरी लहर की मौतों ने तो सबको नि:शब्द कर दिया है। सारा समाज सिसकियों में जी रहा है। क्या अमीर, क्या गरीब सरकारी चश्में से सभी को एक समान देखा जा रहा है। सरकार ने प्रशासन को अपनी पूरी ताकत झोंक दी है और खुद कवारंटीन हो गई है। झूठे आंकड़ों की बाजीगरी का खेल खेला जा रहा है और गोदी मीडिया या गिद्ध मीडिया से मीडिया बाजी करवाकर अपनी पीठ थपथपाने का सिलसिला जारी है।
असंगठित क्षेत्र में एक और क्षेत्र आता है वहअसंगठित व्यापारियों का। इस क्षेत्र में भारत के 6.38 करोड़ व्यक्ति असंगठित रूप से व्यापार करते हैं जो कि ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवारों से संबंधित होते हैं और सबसे बड़े उपभोक्ता एवं टेक्स भुगतान करने वाले होते हैं ।अच्छा रहन- सहन, खानपान, सुविधाजनक जीवन शैली, उच्च शिक्षा और अच्छा स्वास्थ्य पर सर्वाधिक खर्च भी करते हैं और अपने परिवार को चलाने के लिए कई प्रकार के टैक्स जैसे जी एस टी, सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स आदि देकर सरकार की आमदनी को बढ़ाते हैं ।इसमें खुदरा और फुटकर विक्रेता दोनों ही आते हैं।
सन् 2016 में नोटबंदी होने और फिर जीएसटी लागू होने से उनका व्यापार बहुत ही कमजोर होता जा रहा है ।आमदनी कम और टेक्स कहीं ज्यादा देना पड़ रहा है साथ ही लालफीताशाही की अकर्मण्यता और वसूली भी परेशान किए हुए हैं ।कोई भी बेरोजगार व्यक्ति अपना छोटा-मोटा व्यापार शुरू करना भी चाहता है तो कोई परेशानी ना हो लोन लेने से लेकर व्यापार को सुचारू रूप से चलाने तक आते में ऐसा हो ही नहीं सकता है। वर्तमान में 2019 के संपूर्ण लाकडाउन से लेकर अभी तक के बंद ने इस व्यापारी समूह की लगभग कमर ही तोड़ दी है। सभी व्यापार बंद है किंतु किराया, टैक्स नौकरों का भुगतान, बिजली का बिल आदि अन्य भुगतान चालू है। सरकार को जब जीएसटी कलेक्शन से कम राजस्व की आमदनी होती है तो देश भर में हाय तौबा मचा दी जाती है किंतु इस समाज के पास जैसे कि अलाउद्दीन का चिराग है जो सरकार की और अन्य लोगों की पैसों की भूख शांत करवाता है ।इस समाज की कोई खैरियत के बारे में भी नहीं सोचता है ।गरीबों, किसानों और मजदूरों के लिए कई योजनाएं लागू होती है। सरकारी कर्मचारियों, नेताओं आदि के लिए इस समाज के द्वारा दिए गए टैक्स से पेंशन और सुविधाएं मिलती रहती है किंतु इसके लिए ना कोई योजना है, ना कोई पेंशन आदि। क्या यह समाज विशेष रूप सेशोषण करने के लिए बना है। जब जरूरत हो थोड़ा बहुत नियम कायदे का डंडा बता दो और रुपयों को झाड़ा लो ।शायद यह सोनी के अंडे देने वाली मुर्गी देश के लिए बन गया है।
कोई भी आपदा आए या चुनावी खर्चा हो या अन्य कोई भी प्रकार का सामाजिक या राजनीतिक कार्य हो इस वर्ग विशेष के द्वारा ही रुपयों की व्यवस्था की जाती है। यह वर्ग व्यवस्था और सरकार के बीच में कोल्हू की तरह पीसता ही रहता है।
देश में एक और क्षेत्र है जिसका देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी )में योगदान तो 50% है किंतु वह हो खुद में मात्र 10% से भी कम श्रम शक्ति रखता है और अधिक योगदान दे रहा है वह है संगठित क्षेत्र। संगठित क्षेत्र जो कि सरकारी संस्थाओं के नियंत्रण में होता है जैसे प्राइवेट स्कूल ,प्राइवेट कंपनी, प्राइवेट संस्थान जो कि सरकार से रजिस्टर्ड होती है और यह 20 से अधिक लोगों को रोजगार देता है। इसमें काम सरकार के नियमों कानूनों के अनुसार होता है। इसमें काम करने वाले लोगों को वेतन और सुविधाएं असंगठित क्षेत्र के लोगों से अधिक मिलती हैं और उनसे एक निश्चित समय में, निश्चित टैक्स की प्राप्ति सरकार को भी होती रहती है। आज देश में इस वर्ग को ज्यादा सुरक्षित माना जा रहा है किंतु भारत जैसा देश जिसकी 90% से अधिक जनता असंगठित क्षेत्र और व्यापार पर निर्भर है उसको संगठित करना इतना आसान होगा यह बहुत ही लंबी और जटिल प्रक्रिया है
वर्तमान में देश में निजीकरण का भी चलन तेजी से बढ़ रहा है। क्या यह निजीकरण इस असंगठित क्षेत्र की कभी मदद कर पाएगा ? वह लोगों को कम से कम वेतन देंगे और अधिक से अधिक उत्पादन और सुविधाएं चाहेंगे। ऐसे में वह मशीनों का उपयोग अधिक करेंगे और बेरोजगारी जो वर्तमान में लगभग 80% तक हो गई है और अधिक बढ़ जाएगी । जिससे देश में अपराध और शोषण को और अधिक बढ़ावा मिलेगा जोकि किसी रूप में देश के मजबूती के लिए बहुत बड़ा खतरा होगा।
वर्तमान में देश कोरोना की गंभीर आपदा से गुजर रहा है। जिसमें लोग अपने परिवार वालों को खो रहे है और आर्थिक रूप से कमजोर भी हो गए हैं। अभी आने वाले समय में देश में आर्थिक रूप से एवं भुखमरी -गरीबी की सुनामी आएगी तो क्या सरकारें उसे संभाल पायेंगी । संभलना कठिन होगा , यदि उचित प्रबंधन नहीं होगा क्योंकि सरकार का पूरा ध्यान अभी
सिर्फ कोरोना को नियंत्रित करने पर है । देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती पर नहीं है ।
इस तरह कह सकते हैं कि न्यू इंडिया में असंगठित क्षेत्र और व्यापार का और अधिक शोषण होगा और इनका पतन/शोषण अर्थात देश का पतन होगा। सरकार को और समाज को इसकी मजबूती के लिए बहुत ही शीघ्र प्रयत्न शुरू करने होंगे एक मजबूत राष्ट्र के लिए।

स्मिता जैन

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