अपनों के बीच कैसी दूरियाँ
ज़िंदगी है चार दिन की
आज यहाँ कल का ठिकाना नहीं
दूर रहो पर प्रेम से रहो मस्त रहो
रिश्तों की डोर मज़बूत कर जियो
चाँद सूरज भी दूर है एक दूजे से
पर एक दूजे से बैर है न भेद भाव
संचालन करते है कई मील के फ़ासले से सारी दुनिया को
रखते सम भाव सारी धरा पर
जीवन बहुत छोटा है हमारा
धन्य हैं हम मानव जन्म मिला
कई हज़ार योनियों के बाद हमें
फिर क्यों फ़ासले बना रखे एक दूजे से हमने
ज़िंदगी की साँस न जाने कब थम जाए पता नहीं
ज़िंदगी एक छलावा है
जितनी ज़िंदगी मिली उसे हँस के
प्रेमपूर्वक जी लो
ले लो मज़े इसी जन्म में
न जाने अगला जन्म मिले न मिले
मानव रूप हमें
#अदिति रूसिया
वारासिवनी