वो मोहब्बत हमसे कुछ
इस तरह निभा गये।
अपने सारे दुख दर्द
दिल में छुपाये रहे।
और मिलते रहे हमसे
हमेशा हँसते हुये।
भनक ही नहीं लगने दी
वो जीते रहे हमारे लिए।।
माना कि हम मोहब्बत
उनसे बेपनाह करते है।
पर वो सारे जमाने से
बेपनाह मोहब्बत करते है।
किस किस ने धोका न दिया
उन्हें इस जमाने में।
पर सबकुछ जानते हुए भी
मोहब्बत दिलसे निभा गये।।
मोहब्बत करना किसी की
जागीर नहीं होती।
जिसे तिजोरी में बंद
किया जा सके।
मोहब्बत तो वो फूल है जो
खिलता है खुशीयों के लिए।
पड़ जाती है मोहब्बत फीकी
अमीरों की गरीबो से।
क्योंकि वो जीते मरते है
सदा ही मोहब्बत में।।
संजय लिख रहा है
मोहब्बत की अपनी परिभाषा।
यदि पसंद आये आपको
तो मित्रों को भी पढ़ा देना।
और मोहब्बत कविता को
अपने दिलो में सजाये रखना।
और दिलसे मोहब्बत अपने
हम सफर साथी से करना।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन, मुम्बई