कब तक दिखावा करूँ अपने मुस्कुराने का
नहीं होता अब……
भर आती है आँखे छलक जाते है आँसू
मंदी की मार ,कभी पिता कभी माँ बीमार
कब तक दिखावा करूँ…….
रोज टूटता हूँ रोज बिखरता हूँ
नहीं देख पाता लाशों के ढेर
कब तक दिखावा करूँ……….
बच्चों की पढ़ाई का भार
पिता क्यों न हो लाचार
कब तक दिखावा करूँ……..
डॉक्टर की फीस परिवार की जिम्मेदारी
कब तक दिखावा करूँ………
रोज मरती है उम्मीदे
रोज टूटते है सपने
कब तक दिखावा करूँ………….
बहुत आसान है कह देना सब ठीक है
पर वास्तव में नहीं नहीं बिल्कुल नहीं
कब तक दिखावा करूँ…………
नहीं मिलता कोई हमदर्द
नहीं लगाता कोई गले से
कब तक दिखावा करूँ………..
कब तक दिखावा करूँ अपने मुस्कुराने का
नहीं होता अब
भर आती है आँखे छलक जाते है आँसू
#किशोर छिपेश्वर”सागर”
भटेरा चौकी बालाघाट