जिंदगी का अब
कोई भरोसा नहीं है।
अभी तो जिंदा है पर
अगले पल का पता नहीं।
आज मैंने मौत को
नजदीक से निकलते देखा।
और अपने परिजन को
बात करते करते जाते देखा।।
मानव जन्म मिलने का
जो विचार मन में आया।
उन्हें लब्जो में हम
व्या कर सकते नहीं।
बस यही सोचा की
न कोई से बैर रखे और
न किसी से अपनापन।
क्योंकि दोनों स्थिति में
तकलीफ मनुष्य को होती हैं।।
हालातो से हम सब
अब गुलाम बन गये हैं।
न जीने की तमन्ना है
न कुछ पाने का मन।
अभी है पर अगले पल का
किसी का भी भरोसा नहीं।
कैसा खेल विधाता इंसानो की
जिंदगी से खेल रहा है।
और इंसानो की करनी का
फल इंसानो को ही दे रहा हैं।
और ये सब ऊपर बैठाकर
नीचे के हाल को देख रहा।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन मुंबई