चारों ओर छुआछूत की बीमारी भारत में फैली थी, इंसानों ने इंसानों को अस्पृश्य मानकर भारत को नर्क बना दिया था । आदमी आदमी का शोषण कर रहा था । कदम-कदम पर असमानता के पैने कांटे बिखरे पड़े थे । उसी कालखंड में 14 अप्रैल 1891 ई. को मऊ, मध्य प्रदेश में एक प्रतिभावान बालक का जन्म हुआ । जिसे आगे चलकर दुनिया ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नाम से जाना – पहचाना ।
विद्यालय के समय से ही भीमराव को भी असमानता नामक बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया । विद्यालय में अलग से पानी पीना, बैलगाड़ी से नीचे धकेलना, बारिश से बचने के लिए एक दीवार का सहारा लेने पर भी बेइज्जत होना । ऐसी तमाम घटनाएं घटित हुईं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के साथ । इतना भेदभाव भीमराव सह न सके और उन्होंने प्रण किया कि भारत से इस बीमारी को खत्म करके ही रहूंगा ।
भीमराव ने शिक्षा रुपी शेरनी का दूध पीना शुरू कर दिया और शिक्षा के क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध विद्वान बन गए । अब बारी थी युद्ध भूमि में योद्धा की तरह लड़ने की । छुआछूत नामक बीमारी से लड़ने के लिए भीमराज जी ने संघर्ष करना शुरू कर दिया । तमाम परीक्षा के हृदय विदारक क्षणों को पार करते हुए भारत के संविधान निर्माण तक का सफर तय किया । अपनी कलम के दम पर सदियों पुरानी छुआछूत की बीमारी के लिये कानून रुपी वैक्सीन का निर्माण किया । इससे दबे -कुचले, हाशिये के लोगों को एक नई मंजिल, एक नई जिंदगी प्राप्त हुई ।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने अपनी पत्नी व हजारों अनुयायियों के साथ 14 अक्टूबर 1956 ई. को सामूहिक रूप में बौद्ध धर्म स्वीकार किया । 6 दिसंबर 1956 ईस्वी को महान देश भक्त, बहुजनों के मसीहा का देहांत हुआ ।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर वह युगपुरुष हैं, जिन्हें संपूर्ण धरा पर निवास करने वाली मानव जाति कभी अनदेखा नहीं कर सकती । ऐसे महान विद्वान कभी-कभी इस धरा पर अवतरित होते हैं ।
एक महान देशभक्त को हमारा कोटि-कोटि वंदन !
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
फतेहाबाद, आगरा