वक्त कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला,
मिट्टी के घरोंदे के बंटवारे की लड़ाई में कब घर को बांट लिया पता ही नहीं चला,
पगडंडी पर चलते चलते न जाने कब
छः लेन सड़क पर पहुंच गए पता ही नहीं चला
दादा के कंधे पर चढ़ हटखेलियां करते करते
कब पोते पोतियों को कंधे पर लेकर आगे बढ़ गए पता ही नहीं चला
भाई बहनों के साथ खाट पर सोने के झगड़े में न जाने कब
बैड पर अकेले करवटें लेने लगे पता ही नहीं चला
मां बापू की सेवा करने में इतना मशगूल रहा
न जाने कब मैं वृद्ध एकांत वास पहुंच गए पता ही नहीं चला
इक्की,दूग्गी,पंजी को पाने की चाहत में
करोड़ों पा कर कब अरबों बटोर लिए पता ही नहीं चला
ये सब करते करते
वक्त कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला
शुभकरण गौड़
हिसार (हरियाणा)