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संक्रांति त्योहार तीर्थ पुण्य दान।
दानी देते तिल गुड भोजन दान।।
पशुओं को खिलाकर चारा दान।
अतिथि देवो भव: गृह की शान।।
यज्ञ अग्नि में करते समिधा दान।
पुरोहितों को देते प्रिय वस्तु दान।।
कर्ण ने रखा अतिथि पुरंदर मान।
इंद्र को दिए कवच कुण्डल दान।।
राजा ने दिया बूढ़ी गायों का दान।
नचिकेता ने माना द्विज अपमान।।
आवेश में आया वाजश्रवा महान।
यमराज को अर्पण प्रिय पुत्र दान।।
वीर ने दिया उत्तम क्षमा का दान।
अहिंसा से दो जीव दया का दान।।
विद्यादान की महिमा बड़ी महान।
रक्तदान से मिलता जीवन वरदान।।
मातपिता आशीष से देते कन्यादान।
नेत्र दान जगत में सर्वश्रेष्ठ महादान ।।
मरणोपरांत करते सर्वोत्तम अंगदान।
सभी सुखी हो ‘रिखब’ का अरमान।।
#रिखबचन्द राँका
परिचय: रिखबचन्द राँका का निवास जयपुर में हरी नगर स्थित न्यू सांगानेर मार्ग पर हैl आप लेखन में कल्पेश` उपनाम लगाते हैंl आपकी जन्मतिथि-१९ सितम्बर १९६९ तथा जन्म स्थान-अजमेर(राजस्थान) हैl एम.ए.(संस्कृत) और बी.एड.(हिन्दी,संस्कृत) तक शिक्षित श्री रांका पेशे से निजी स्कूल (जयपुर) में अध्यापक हैंl आपकी कुछ कविताओं का प्रकाशन हुआ हैl धार्मिक गीत व स्काउट गाइड गीत लेखन भी करते हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-रुचि और हिन्दी को बढ़ावा देना हैl
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