बहुमुखी बहुभाषी ज्योति

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रामकृष्ण मिशन शिलांग की संयोजना में प्रकाशित त्रैमासिक ई’ पत्रिका का दूसरा अंक Autom 2 मुझे प्राप्त हुआ। हिन्दी ,अंग्रेजी तथा खासी भाषा समावेशित इस पत्रिका को भाषा विशेष में क्रम अनुसार ‘Light’, ‘ज्योति’ , ‘ Ka Jingsai’ नाम दिए गए हैं जिसका एक ही अर्थ निकलता है ,”ज्ञान” । कविता लेख ,कहानी ,समाचार आदि विभिन्न विधाओं को समाविष्ट किया गया है ।
सी.टी. संगमा का अनुसन्धानमूलक लेख “बाल्पक्रम-एक खोज सनातन धर्म की” मेरी दृष्टिमें उत्कृष्ट लेख है। लेख में भौगोलिक विवरण, प्राकृतिक वर्णना, साक्ष्यपूर्ण घटनाओं के साध बाल्पक्रम की ऐतिहासिकता को सिद्ध किया गया है। इस लेख को हिन्दी पाठकों के सामने मनोग्राही रूप में परोसने का श्रेय निश्चय ही अनुवादिका डाॅ अनीता पंडा की सुदक्ष कलमकारी को मिलता है।
स्तम्भकार एवं कवि डाॅ अवधेश कुमार अवध द्वारा लिखित “पूर्वोत्तर में आध्यात्मिक सूर्योदय का अग्रदूत” ज्ञानवर्धक लेख है जो स्वामीजी विवेकानन्द की शिलॉंग यात्रा एवं उसके प्रभावों पर प्रकाश डालता है। रीता सिंह सर्जना तथा वाणी बरठाकुर की लघुकथाएँ संक्रमक करोना रोग पर आधारित हैं जिन्हें अपनी-अपनी सृजनकला से मनोरंजक बनाया हैं । धनवान और निर्धन लोगोंकी जीवन शैली में जमीन-आसमान का फर्क दिखाई देता है। इसी फर्क के कारण जिन्दगी इस खूबसूरत दुनिया में बेतरतीब लगती है। एक ज्वलन्त समस्या तथा कटु सच को कवयित्री डाॅ अनीता पंडा ने अपनी कविता “बेहिसाब जिन्दगी में क्षोभ के साथ अभिव्यक्ति दी है ।

अंग्रेजी विभाग से डाॅ स्ट्रीमलेट डखार का “Lineage system in khasi matrlieage system ” तथा डेनिएल माराक का “Garo art and Tradition and change” ये शोधछात्रों के लिए सहायक आलेख हैं । डाॅ डखार ने अपने आलेख में मातृसत्तात्मक खासी वंश परंपरा के विषय पर विस्तार से चर्चा की है । “A Vedanisst view of Ireland”, में कार्ल होवाइट मार्स रामकृष्ण परमहंस जी की कही एक बात से बड़े प्रभावित हैं जिसे परमहंसजी ने एक धर्मान्तरी आइरिस बौध संत से एक बार कहा था। खासी भाषा में “उ रामकृष्ण”, माँ शारदा के वचनामृत पर आधारित “की क्यनतिएन का कमिए बाखुइड”, “का जिन्गक्रेन उ स्वामी विवेकानंद ” तथा ” उ स्वामी प्रभानन्द” एवं खासी पारम्परिक वाद्य यंत्र पर आधारित आलेख “की सुर मयल्लुंग का जाम्लू” उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त “द लीच खासी लोककथा” पर कार्टून कथा मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद है।

निष्कर्षत: आकर्षक आवरण पृष्ठ एवं सुन्दर सज्जा, के साथ साहित्य, दर्शन, मनोरंजन एवं कलादि का समायोजन है। अनुक्रमणिका में हिन्दी आलेखों की उपस्थिति का अभाव खलता है ।

गीता लिम्बू
वरिष्ठ लेखिका एवं कवयित्री
द्वारा डॉ अवधेश कुमार अवध
शिलॉंग, मेघालय

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।