सिंदूरा और वैभव “लव वर्डस” के नाम से जाने जाते थे. बैकिंग के कोचिंग सेंटर में दोनो की मुलाकात हुई थी. प्रतियोगिता परीक्षा समाप्त होते ही प्यार इतना परवान चढ़ा की दोनो ने शादी कर ली.जब रीजल्ट आया तो सिंदूरा का चूनाव हो गया जबकि वैभव पीछे रह गया था.जल्दी ही सिंदूरा की नौकरी लग गई .शुरु-शुरु में सब कुछ ठीक-ठाक रहा. वैभव ने भी एक फार्म में नौकरी कर ली.सिंदूरा की आय वैभव के आय पर भारी था. धीरे धीरे तनाव बढ़ने लगा.पुरूष का अहंकार स्त्री के कठिन परिश्रम पर भारी पड़ने लगा था.रही सही कसर सिंदूरा के माँ बनने की भूमिका ने पूरी कर दी.मैटरनीटी लीभ खत्म होते ही मामला दरवाजे से बाहर झांकने लगा.नासमझी यह थी कि सिंदूरा नौकरी छोड़ दे और घर में रह कर नवजात शिशू की देखभाल करे.क्योंकि यही स्त्रीकर्त्तव्य है.एक दिन वैभव अपनी रिपोर्ट देने बास के पास गया. वे फोन पर पत्नी से बात कर रहे थे. मैडम साहिबा आप बस मीटिंग अच्छे से संभाले डिनर बनाने की चिंता हम पर छोड़ दे.बदले में एक मीठी मुस्कान दे दें. वैभव आश्चर्य में पड़ गया क्योंकि बास का मतलब जो केवल हुक्म चलाये पर यहाँ तो मामला उल्टा था.वैभव बिना रिपोर्ट दिए ही घर पहुँचा.कैसीयर महोदया आज से घर का बास मैं हूँ उसने किचन का एपरन गले में डाल बच्ची को गोद में लेते हुए कहा.
रिमझिम झा
कटक.ओडिशा