मोहब्बत सूरत से
नहीं होती है।
मोहब्बत तो
दिल से होती है।
सूरत खुद प्यारी
लगने लगती है।
कद्र जिन की
दिल में होती है।।
मुझे आदत नहीं
कही रुकने की।
लेकिन जब से
तुम मुझे मिले हो।
दिल कही और
ठहरता नहीं है।
दिल धड़कता है
बस आपके लिए।।
कितनो ने मुझसे
नज़ारे मिलाई।
पर किसी से
नज़रे मिली नहीं।
दिल की गहराइयों
में तुम थी।
इसलिए दिल ने
औरो को चाहा नहीं।।
बड़ा ही साफ़
पाक रिश्ता है।
जनाब,
रिश्ता ये मोहब्बत का।
दरवाजे खुद खोल
जाते है जन्नत के।
जिन को सच्ची
मोहब्बत होती है।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुंबई)