किसान का आटा
प्यार का पानी।
नमक है बीबी का
यारो बहुत प्यार।
इन सब के मिलने से
रोटी का मिश्रण बन जाता।
और चकले बेलन से खेलकर
कहले तवा पर सिक जाती है।
और पेट की भूख मिटाने
के लिए रोटी बन जाती।।
बड़ा अजीब किसका
इस रोटी का है।
रोटी से ही तो भरता
हम सभी का पेट।
क्या कुछ नही करवाती
रोटी ये इंसानों से।
तब कही जाकर ही
पेट की आग बुझ पाती।।
जीने के है तीन निशान
रोटी कपड़ा और मकान।
बिना कपड़े और मकान के
इंसान जीत तो सकता है।
पर रोटी के बिना
इंसान जी नही सकता।
तभी तो रोटी की खातिर
दर दर की ठोकरे खाता है।
और पेट की आग बुझाने
कहाँ कहाँ नही जाता है।।
कुछ मिले या न मिले
पर रोटी की चाह रखता है।
जिसको खाकर ही अब
इंसान संसार में जी सकता है।
होता है अच्छे बुरे का ज्ञान
फिर गलत काम कर जाता है।
क्योंकि उसे पेट भूख मिटना है
और अपने को जिंदा रखना है।
इसलिए तो वो किसी भी
हद तक गिर जाता है।।
जय जिनेन्द्रा देव की
संजय जैन (मुम्बई)