लहरा लो तुम आज तिरंगा,
बहे मुक्त ज्यों पावन गंगा।
माँ ने पूत बहनों ने भाई,
वधूओं ने सिन्दूर चढ़ाई।
मिला तब राष्ट्र प्रतीक यह प्यारा
पुण्य पर्व है आज हमारा…।
शत्रु ना बुरा नजर कर पाए,
चाहे महाभारत हो जाए l
सवा अरब हम रक्षक इसके,
रंग ना तनिक धूमिल हो पाएll
हो सबल देश यह सबकी आशा,
भिन्न भले हैं विचार और भाषाl
भारत जन का अभिमान तिरंगा,
है राष्ट्र धर्म सम्मान तिरंगाl
शौर्य शान्ति और हरीतिमा का,
कहता हिन्दुस्तान तिरंगाll
केसरिया में शौर्य की लाली,
हरित धरा की है हरियालीl
श्वेत शान्ति-सुधा-सा निर्मल,
चक्र है धर्म की धुरी निरालीll
भारत सदा शान्ति का पोषक,
वसुधैवकुटुम्कम का उद्घोषकl
यवन पुर्तगीज ब्रिटिश युनानी,
सबने है इस बात को मानीl
है सहनशील भारत सतरंगा,
लहरा लो फिर आज तिरंगाl
बहे मुक्त ज्यों पावन गंगा..ll
परिचय : विजयकान्त द्विवेदी की जन्मतिथि ३१ मई १९५५ और जन्मस्थली बापू की कर्मभूमि चम्पारण (बिहार) है। मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार के विजयकान्त जी की प्रारंभिक शिक्षा रामनगर(पश्चिम चम्पारण) में हुई है। तत्पश्चात स्नातक (बीए)बिहार विश्वविद्यालय से और हिन्दी साहित्य में एमए राजस्थान विवि से सेवा के दौरान ही किया। भारतीय वायुसेना से (एसएनसीओ) सेवानिवृत्ति के बाद नई मुम्बई में आपका स्थाई निवास है। किशोरावस्था से ही कविता रचना में अभिरुचि रही है। चम्पारण में तथा महाविद्यालयीन पत्रिका सहित अन्य पत्रिका में तब से ही रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। काव्य संग्रह ‘नए-पुराने राग’ दिल्ली से १९८४ में प्रकाशित हुआ है। राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति के प्रति विशेष लगाव और संप्रति से स्वतंत्र लेखन है।