परीक्षा और प्रमाण का चोली दामन का साथ है, यहाँ प्रमाण की आवश्यकता प्रत्येक को होती है और होनी भी चाहिए। बिना प्रमाण के अपने शिशु से भी आपका रिश्ता तय नहीं हो सकता।
परीक्षा लेना और उसके बाद प्रामाणिक करना हमारे भारत में सनातन काल से चला आ रहा है। पहले गुरु-शिष्य परीक्षा लेते व देते रहे तो फिर राजा-प्रजा और फिर प्रत्येक व्यक्ति परीक्षा और प्रमाण के बंधन में बंधा।
यहाँ प्रमाणीकरण और परीक्षा लेना दोनों ही नितांत आवश्यक है, अन्यथा जीवन की कुर्सी से विश्वास के पाये खिसकना आरम्भ कर देते हैं।
प्रामाणिक और सत्यता की कसौटी पर जब तक कुछ न तपाया जाए उस पर विश्वास होना सहज सम्भव नहीं है।
बहरहाल, अभी तो देश में पतंजलि आयुर्वेद द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना के उपचार का दावा करती आयुर्वेदिक औषधि बाज़ार में लेकर आए तो हड़कंप मच गया। हड़कंप आए भी क्यों नहीं, क्योंकि जिस दवा की खोज में पूरा विश्व बीते पाँच माह से जुटा हुआ है तो यह कस्तूरी बाबा रामदेव जी के हाथ लगी तो स्वाभाविक रूप से भूचाल का आना तय है। क्योंकि अब तक भारत को दीन-हीन देश की संज्ञा के सिवा मिला ही क्या है! और बात प्रमाण और परीक्षा की है तो सतयुग में स्वयं विष्णु, त्रेता में राम और द्वापर में कृष्ण भी इसी परीक्षा और प्रमाण की अग्नि में तपे हैं, यहाँ तक कि राम को तो कलयुग में भी अपने होने के प्रमाण न्यायालय तक दिलवाने पड़े, तब बाबा रामदेव जी क्या चीज़ हैं! साक्ष्य और प्रामाणिकता की आँच में उन्हें तपना ही होगा और निश्चित तौर पर वे उस भट्टी में तप भी रहे हैं परंतु दुःख इस बात का है कि भारत की एक अवसादग्रस्त मानसिकता के परिचायक किस तरह प्रतीक्षा में है कि बाबा उस भट्टी में झुलस जाएँ।
कमाल करते हो साहब! यदि कोई हिंदुस्तान में व्यापार भी करे तो अपराध है, जबकि व्यापार तो ज़्यादा बेहतर है। जब तुमने उन बाबाओं को भी सिर पर चढ़ाया जो विशुद्ध भिक्षा माँगते थे। आज भारत के मुट्ठीभर लोग सोशल मीडिया पर स्वामी जी के व्यापारी होने की बात कहते हैं तो मेरा उन्हीं से सवाल है कि क्या व्यापार करना गुनाह है? भिक्षा माँगना भला और व्यापार करना गुनाह।
क्या वो संन्यासी व्यापार भी अपने लिए कर रहा है? सोशल मीडिया से समय मिल जाए तो एक बार ज़रूर देखना कि बाबा रामदेव द्वारा पतंजलि आयुर्वेद से अर्जित एक-एक रुपया कहाँ खर्च होता है।
दस हज़ार से ज़्यादा योग प्रचारकों का वेतन उसी अर्जित लाभ से दिया जाता हैं, जो योगप्रचारक भारत के गाँवों में लोगों को निःशुल्क योग सीखा रहे हैं। लाखों महिलाओं और पुरुषों को रोज़गार मिल रहा है, उनका परिवार पतंजलि से ही चल रहा है।
यहाँ तक कि आचार्यकुलम गुरुकुल जो भारत की सांस्कृतिक पद्धति से शिक्षा के लिए खर्च किया जा रहा है। जब-जब भी भारत में आपदा आई, तब-तब स्वामी जी ने पतंजलि का ख़ज़ाना जनहितार्थ खोल दिया जबकि एक भी बहुराष्ट्रीय कंपनी कही नज़र नहीं आती। यह तो ‘अर्थ से परमार्थ’ की बात हुई, अब आते हैं #कोरोनिल, #श्वासारी और #अणुतेल के माध्यम से कोरोना के उपचार की दवा बाज़ार में लाने पर स्वामी जी व आचार्यश्री के बारे में अनाप शनाप बकवास करने वाले झुण्ड की तो साहब! यह भारत है और यहाँ प्रमाण तो राम जन्म के स्थान के भी दशकों तक अदालत को देने ही पड़े थे। वैसे ही स्वामी जी एवं पतंजलि को भी प्रमाण उपलब्ध करवाने होंगे, और कुछ तो उपलब्ध करवा भी दिए हैं।
आयुष मंत्रालय ने पतंजलि द्वारा जारी कोरोना के उपचार संबंधी विज्ञापन पर आपत्ति दर्ज करवाई तो पूरे देश में एक तरह के जमाती लोट लगाने लग गए कि पतंजलि की दवा फ़ेल हो गई। कुछ तो कोरोना की दवा को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा ही मानते है। चाहे जो कुछ भी हो पर यदि पतंजलि का दावा ग़लत होगा तो पतंजलि इसका खामियाज़ा भुगतेगा, और यदि दावा प्रामाणिक हो जाता है जैसे राम मंदिर निर्माण का दावा अयोध्या में उसी ज़मीन पर सिद्ध और प्रामाणिक हुआ वैसे ही तो क्या वो लोग अपने किए पर खेद व्यक्त करेंगे?
आज पतंजलि इस दिव्य औषधि के माध्यम से पुनः आयुर्वेद को जिताने में संघर्षरत है, यह जीत पतंजलि से ज़्यादा आयुर्वेद की मानी जाएगी यानी भारत की जीत होगी।
ख़ैर, जितने मुँह उतनी बातें हैं, परंतु जब त्रेता में राम ने, कलयुग में राम जन्मभूमि ने प्रमाण दिया था तो स्वाभाविक रूप से आधुनिक युग में रामदेव जी भी प्रमाण देंगे ही और निश्चित तौर पर राम और राम जन्मभूमि की तरह विजय होंगे।
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
हिन्दीग्राम, इंदौर
[लेखक हिंदी भाषा के प्रचारक एवं पत्रकार है]