सगरों की उर्मियों में,
तुम दिखे हो गीत मेरे ।
फूल की हर पाँखुरी में,
तुम हँसे हो गीत मेरे ।।
उर धड़कते,
बनके धड़कन..
तुम बने
मन ईश मेरे।
दूध से
निखरे उजाले,
बन गए
मन मीत मेरे..
रात के घनघोर टिम में,
तुम छिपे हो गीत मेरे।।
आप मेरी
सांझ सुबह,
तुम ही मेरे
रात दिन हो,
आस की
हर सांस मेरी
तुम ही मेरे
प्राण तन हो..
आप बढ़ती मन उमस में,
भी टिके हो गीत मेरे।।
तुम कविता ,
की कविता
तुम मेरे उर
नभ सविता
तुम ही बीती,
बात मेरी
मेरे जीवन
के भविता..
आते-जाते श्वास पथ में,
तुम रमे हो गीत मेरे।।
तुम मेरे हो,
काबा काशी
तुम ही
गुरुद्वारा शिवालय,
आप तीरथ
और व्रत हो
तुम ही,
पूजा और देवालय..
पाप पुण्य देह में भी,
ध्रुव बने हो गीत मेरे ।।
#सुशीला जोशी
परिचय: नगरीय पब्लिक स्कूल में प्रशासनिक नौकरी करने वाली सुशीला जोशी का जन्म १९४१ में हुआ है। हिन्दी-अंग्रेजी में एमए के साथ ही आपने बीएड भी किया है। आप संगीत प्रभाकर (गायन, तबला, सहित सितार व कथक( प्रयाग संगीत समिति-इलाहाबाद) में भी निपुण हैं। लेखन में आप सभी विधाओं में बचपन से आज तक सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों का प्रकाशन सहित अप्रकाशित साहित्य में १५ पांडुलिपियां तैयार हैं। अन्य पुरस्कारों के साथ आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान द्वारा ‘अज्ञेय’ पुरस्कार दिया गया है। आकाशवाणी (दिल्ली)से ध्वन्यात्मक नाटकों में ध्वनि प्रसारण और १९६९ तथा २०१० में नाटक में अभिनय,सितार व कथक की मंच प्रस्तुति दी है। अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षण और प्राचार्या भी रही हैं। आप मुज़फ्फरनगर में निवासी हैं|