जिन लोगों का जीवन स्तर पहले से ही गिरा हुआ हो, लाॅकडाउन उनका क्या जीवन स्तर गिराए गा? विश्व जानता है कि भारत भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा को पार कर चुका है। सर्वविदित है कि राष्ट्र के सर्वोच्च लिखित संविधान के चारों तथाकथित सशक्त स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता से जुड़े लोगों का जीवन स्तर इतना गिर चुका है कि वेश्यालयों की वेश्याओं का जीवन स्तर भी कहीं ऊंचा है।
चूंकि वेश्याएं खुल्लम-खुल्ला वह धंधा करती हैं। जहां उच्चस्तरीय पदाधिकारी एवं संभ्रांत सभ्यता के पुजारी जन्मजात नंगे होते हैं। चूंकि उपरोक्त दुष्ट लोग सर्वप्रथम भ्रष्टाचार के माध्यम से बीमार, गरीब, दिव्यांग एवं विवश राष्ट्रभक्त नागरिकों का रक्त चूसते हैं और उसके उपरांत जीवित मांस नोचने की अभिलाषा लिए वेश्यालयों में जाते हैं। जहां समाज द्वारा कलंकित संज्ञा देते हुए ठुकराई व दुत्कारी गई विवश सभ्य वेश्याएं जात-पात से ऊपर उठकर धन के बदले अपना सब कुछ न्यौछावर करते हुए अपने ग्राहकों को परम सुख सहित सम्पूर्ण संतुष्ट करती हैं।
जबकि उल्लेखनीय है कि विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं पत्रकारिता से जुड़े लोग धन लेकर भी अपने ग्राहकों को संतुष्ट नहीं करते। अर्थात चारों सशक्त स्तम्भों से जुड़े लोग राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों से संबंधित संविधान द्वारा दी गई सौगंध के प्रति न तो धर्म निभाते हैं और ना ही धर्मग्रंथों के अनुसार कर्म करते हैं।
अतः जिन लोगों के जीवन का संवैधानिक एवं धार्मिक स्तर पहले से ही गिर चुका हो, लाॅकडाउन की क्या औकात कि उन लोगों के जीवन स्तर को गिरा सके?
इंदु भूषण बाली