करे फर्याद हम किस से,
सभी तो एक जैसे है।
जब रक्षक बन जाये भक्षक,
तो फिर किस से करे फर्याद।
कितना कुछ बदल दिया,
हुए जबसे हम होशियार।
की पहले तरह वो आत्मीयता,
नही बची अब घरों में।।
सब के सब लूटने को,
बैठे है तैयार यहां पर।
नियत ऐसी हो रही,
हमारे समाज की लोगों।
फिर किस से आत्मीयता की,
रखे उम्मीदे अब हम सब।
ऐसे माहौल में क्या गाँव,
और शहर बच पायेगा।।
कलयुग में सतयुग की उम्मीदे,
हमें रखना बेकार सी लगती है।
जहाँ बेटा बेटी भी साथ,
छोड़ देते है माँबाप का।
कितना कुछ बदल गया है,
इस कलयुगी समाज का।
अब तुम ही बताओ कि,
करे किस से फर्याद हम।
की बदल जाये हमारी सोच।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।