“आठ बज चुका है ,पर हमारी लाड़ली राजकुमारी रश्मि की निद्रा अभी तक नहीं टूटी। इसे अपनी सेहत की ज़रा-सी भी फिक्र नहीं रही। जबसे लॉकडाउन क्या हुआ कि किसी के पास कोई काम ही नहीं रहा करने को, सिवाय मोबाइल और टी0वी0 देखने के। न किसी का सोने का कोई नियत समय है और न जागने का। न नाश्ता करने का कोई समय है और न खाने-पीने का। कोई कार्य समय पर नहीं करना किसी को।
मॉर्निंग वॉक , मेडिटेशन और एक्सेसाइज़ तो न जाने कहाँ गुम हो गये। अरे मैं तो कहती हूँ कि लॉकडाउन हुआ है , सारी दुनिया, सब कुछ लॉकडाउन है, लेकिन अपने घर, लॉन, बालकनी में तो लॉकडाउन नहीं है, वहाँ वॉक करो, मेडिटेशन करो, एक्सेसाइज़ करो।”
माँ लगातार बड़बड़ाती हुई किचेन में नाश्ता बना रही थी । मैं भी जल्दी-जल्दी फ्रेश होकर किचेन में चुपके से जाकर माँ के गले से लग गयी। मुझे देखते ही माँ मुस्कराकर मेरे हाथों को चूम कर बोली–
“अरे आ गयी मेरी प्यारी रश्मि बेटी, तू तो मेरी राजकुमारी है, प्यारी-सी परी है, लेकिन बेटी ! लॉकडाउन का मतलब अपनी कार्यशैली, अपनी दिनचर्या से दूर हो जाना नहीं होता। मनमाने ढंग से खाने-पीने, सोने-जागने से स्वास्थ्य से सम्बन्धित अनेक समस्याएँ जन्म ले लेतीं हैं, जैसे–आलस, सुस्ती, मोटापा, कमर-दर्द, पीठ-दर्द आदि। टी0वी0, मोबाइल आदि अधिक समय तक देखने से आँखों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।”
माँ की बातें मैं गम्भीरतापूर्वक सुनती रही, फिर अपने कमरे में जाकर आइने के सामने खड़ी होकर
बड़े ध्यान से स्वयं को निहारने लगी, मैं लॉकडाउन में पहले की अपेक्षा काफी चौड़ी दिख रही थी।
उसके बाद आलमारी में रक्खे हुए ऑफिस में पहन कर जाने वाले जो कपड़े थे, उन्हें मैंने निकाल कर पहनने का प्रयास किया, लेकिन मैं उन्हें पहन न सकी, क्योंकि वे सारे कपड़े छोटे और कसे हो चुके थे।
मैं यह सब देखकर काफी चिन्तित हो उठी। मैंने माँ के द्वारा समझायी गयी बातें गाँठ बाँध लीं और उन पर अमल करने का दृढ़तापूर्वक निश्चय किया कि–
“कोविद19 के कारण भले ही सारी दुनिया लॉक डाउन है, सब कुछ बन्द है, पर मुझे अपने घर में ही रहकर पूर्व की भाँति विधिवत क्रियाशील रहकर अपने निश्चित समय पर ही सारे कार्य करने हैं।”
ऐसा निश्चय करके मैं अपनी बालकनी में जाकर ध्यान की मुद्रा में बैठ गयी।
डॉ.मृदुला शुक्ला “मृदु”
लखीमपुर-खीरी