जुगनुओं की तरह, टिमटिमाते रहो।
तिरगी ज़िन्दगी से, मिटाते रहो।।
ज़ख्म भी हैं बहुत, दर्द भी कम नहीं।
अश्क पीते रहो, मुस्कुराते रहो।।
मयकशों से तमन्ना , करे मयकदा।
तिश्नगी हर दिलों की, बुझाते रहो।।
ग़म की रातें, अंधेरों के साये घने।
इक चरागे मुहब्बत, जलाते रहो।।
इसमे शोले भी हैं, और नफ़रत भी है ।
इस सियासत से, दामन बचाते रहो।
हिंसा और झूठ, नफ़रत, कपट, दुश्मनी।
इन सभी को हवन मे , जलाते रहो।।
पीढ़ियां आ रही हैं,उभर कर नई।
राह नेकी की उनको दिखाते रहो।।
हर सितम गर”अकेला”, यही चाहता।
अपने जज्बात दिल मे, दबाते रहो।।
आनंद कुमार जैन,
कटनी
परिचय-
नाम आनन्द कुमार जैन
साहित्यिक उपनाम “अकेला”
पता कटनी ( मध्य प्रदेश)
कार्य क्षेत्र व्यापार
विधा ग़ज़ल/मुक्तक/हायकु जैन धर्म पर भी रचना।
सम्मान ग़ज़ल कुम्भ, जैन गौरव सम्मान, राष्ट्र भाषा सम्मान, स्वतंत्रता दिवस राज भाषा सम्मान सहित अनेक हैं।