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रोते को अब हँसाने की बात करो
उजड़े घर को बसाने की बात करो
मीनारें जगमगा उठे भरे रोशनी से
आशियाने जरा सजाने की बात करो
कायम रहे इंसानियत मिला लो दिल
जो रूठ गए उसे मनाने की बात करो
छोड़ गए गाँव चले गए मीलों जो दूर
वापस उन्हें फिर बुलाने की बात करो
बूढ़ी माँ कभी दादी से कभी नानी से
फिर वही कहानी सुनाने की बात करो
रिश्ता रहे क़ायम बना भाईचारा रहे
दूरियां अब सारी मिटाने की बात करो
-किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट
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