मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से साभार
सुषमा स्वराज की हिन्दी पर बड़ी शानदार पकड़ थी. उनकी हिंदी में तत्सम शब्द अधिक होते थे. फिर भी उनकी भाषा बनावटी नहीं लगती थी. विदेश मंत्री रहते हुए सुषमा स्वराज ने अपने एक चर्चित भाषण में सितम्बर 2016 में संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में ही भाषण दिया था. उनके इस भाषण की पूरे देश में चर्चा हुई थी. विश्व हिन्दी सम्मेलनों में वे बढ़- चढ़कर भाग लेती थीं. हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए भी उन्होंने अनेक प्रयत्न किए.
संस्कृत से भी उनका विशेष प्रेम था. वे सदा संस्कृत में शपथ लेती थीं. उन्होंने अनेक अवसरों पर संस्कृत में भाषण दिया. 2012 में ‘साउथ इंडिया एजुकेशन सोसायटी’ ने सुषमा को पुरस्कार दिया जो मुंबई में सम्पन्न हुआ. संस्कृत के अनेक विद्वान आए थे. सम्मान प्राप्ति के पश्चात् जब भाषण देने की बारी आई, तो सुषमा ने बोलने के लिए संस्कृत को चुना. सम्मान में जो धनराशि मिली थी, वो संस्था को लौटाते हुए बोलीं कि संस्कृत के ही काम में वह पैसा लगा दें. इसी प्रकार जून 2015 में 16 वाँ विश्व संस्कृत सम्मेलन बैंकाक में हुआ जिसकी मुख्य अतिथि सुषमा स्वराज थीं. उन्होंने पांच दिन के इस सम्मेलन का उद्घाटन भाषण संस्कृत में दिया था.
वे अनेक भाषाओं में पारंगत थीं. हिंदी उत्कृष्ट, अंग्रेजी और संस्कृत धाराप्रवाह, हरियाणवी धड़ाधड़, पंजाबी बहुत प्यारी, उर्दू भी अच्छी. फिर जब कर्नाटक से चुनाव लड़ीं, तो कन्नड भी सीख ली.
सुषमा स्वराज (१४ फरवरी,१९५२- ०६ अगस्त, २०१९) एक भारतीय महिला राजनीतिज्ञ और भारत की पूर्व विदेश मंत्री थीं. वे वर्ष २००९ में भारत की भारतीय जनता पार्टी द्वारा संसद में विपक्ष की नेता चुनी गयी थीं, इस नाते वे भारत की पन्द्रहवीं लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता रही हैं. इसके पहले भी वे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में रह चुकी हैं तथा दिल्ली की मुख्यमन्त्री भी रही हैं.
अम्बाला छावनी में जन्मी सुषमा स्वराज ने एस॰डी॰ कॉलेज अम्बाला छावनी से बी॰ए॰ तथा पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पहले जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. आपात् काल का पुरजोर विरोध करने के बाद वे सक्रिय राजनीति से जुड़ गयीं. वर्ष २०१४ में उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और देश में किसी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने की उपलब्धि भी उन्हीं के नाम दर्ज है.
सुषमा स्वराज (विवाह पूर्व शर्मा) का जन्म १४ फरवरी १९५२ को हरियाणा (तब पंजाब) राज्य की अम्बाला छावनी में हुआ था. उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख सदस्य रहे थे. स्वराज का परिवार मूल रूप से लाहौर के धरमपुरा क्षेत्र का निवासी था, जो अब पाकिस्तान में है. उन्होंने अम्बाला के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत तथा राजनीति विज्ञान में स्नातक किया. १९७० में उन्हें अपने कॉलेज में सर्वश्रेष्ठ छात्रा के सम्मान से सम्मानित किया गया था. वे तीन साल तक लगातार एस॰डी॰ कॉलेज छावनी की एन सी सी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट और तीन साल तक राज्य की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी वक्ता भी चुनी गईं. इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से विधि की शिक्षा प्राप्त की. पंजाब विश्वविद्यालय से भी उन्हें १९७३ में सर्वोच्च वक्ता का सम्मान मिला था. १९७३ में ही स्वराज भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता के पद पर कार्य करने लगी. १३ जुलाई १९७५ को उनका विवाह स्वराज कौशल के साथ हुआ,जो सर्वोच्च न्यायालय में उनके सहकर्मी और साथी अधिवक्ता थे. कौशल बाद में छह साल तक राज्यसभा में सांसद रहे, और इसके अतिरिक्त वे मिजोरम प्रदेश के राज्यपाल भी रह चुके हैं. स्वराज दम्पत्ति की एक पुत्री है, बांसुरी, जो लंदन के इनर टेम्पल में वकालत कर रही हैं.
७० के दशक में ही स्वराज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गयी थी. उनके पति, स्वराज कौशल, सोशलिस्ट नेता जॉर्ज फ़र्नान्डिस के करीबी थे, और इस कारण ही वे भी १९७५ में फ़र्नान्डिस की विधिक टीम का हिस्सा बन गयी. आपातकाल के समय उन्होंने जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. आपातकाल की समाप्ति के बाद वह जनता पार्टी की सदस्य बन गयी. १९७७ में उन्होंने अम्बाला छावनी विधानसभा क्षेत्र से हरियाणा विधानसभा के लिए विधायक का चुनाव जीता और चौधरी देवी लाल की सरकार में से १९७७ से ७९ के बीच राज्य की श्रम मन्त्री रह कर २५ साल की उम्र में कैबिनेट मन्त्री बनने का रिकॉर्ड बनाया था.१९७९ में तब २७ वर्ष की स्वराज हरियाणा राज्य में जनता पार्टी की राज्य अध्यक्ष बनी.
८० के दशक में भारतीय जनता पार्टी के गठन पर वह भी इसमें शामिल हो गयी. इसके बाद १९८७ से १९९० तक पुनः वह अम्बाला छावनी से विधायक रही, और भाजपा-लोकदल संयुक्त सरकार में शिक्षा मंत्री रही. अप्रैल १९९० में उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया, जहाँ वह १९९६ तक रही. १९९६ में उन्होंने दक्षिण दिल्ली संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीता, और १३ दिन की वाजपेयी सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री रही. मार्च १९९८ में उन्होंने दक्षिण दिल्ली संसदीय क्षेत्र से एक बार फिर चुनाव जीता. इस बार फिर से उन्होंने वाजपेयी सरकार में दूरसंचार मंत्रालय के अतिरिक्त प्रभार के साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में शपथ ली थी. १९ मार्च १९९८ से १२ अक्टूबर १९९८ तक वह इस पद पर रही. इस अवधि के दौरान उनका सबसे उल्लेखनीय निर्णय फिल्म उद्योग को एक उद्योग के रूप में घोषित करना था, जिससे कि भारतीय फिल्म उद्योग को भी बैंक से क़र्ज़ मिल सकता था.
अक्टूबर १९९८ में उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया, और १२ अक्टूबर १९९८ को दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला. हालांकि, ३ दिसंबर १९९८ को उन्होंने अपनी विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया, और राष्ट्रीय राजनीति में वापस लौट आई. सितंबर १९९९ में उन्होंने कर्नाटक के बेल्लारी निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के विरुद्ध चुनाव लड़ा. अपने चुनाव अभियान के दौरान, उन्होंने स्थानीय कन्नड़ भाषा में ही सार्वजनिक बैठकों को संबोधित किया था. हालांकि वह ७% के मार्जिन से चुनाव हार गयी. अप्रैल २००० में वह उत्तर प्रदेश के राज्यसभा सदस्य के रूप में संसद में वापस लौट आईं. ९ नवंबर २००० को उत्तर प्रदेश के विभाजन पर उन्हें उत्तराखंड में स्थानांतरित कर दिया गया. उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फिर से सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में शामिल किया गया था, जिस पद पर वह सितंबर २००० से जनवरी २००३ तक रही. २००३ में उन्हें स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों में मंत्री बनाया गया, और मई २००४ में राजग की हार तक वह केंद्रीय मंत्री रही.
अप्रैल २००६ में स्वराज को मध्य प्रदेश राज्य से राज्यसभा में तीसरे कार्यकाल के लिए फिर से निर्वाचित किया गया. इसके बाद २००९ में उन्होंने मध्य प्रदेश के विदिशा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से ४ लाख से अधिक मतों से जीत हासिल की. २१ दिसंबर २००९ को लालकृष्ण आडवाणी की जगह १५वीं लोकसभा में सुषमा स्वराज विपक्ष की नेता बनी और मई २०१४ में भाजपा की विजय तक वह इसी पद पर आसीन रहीं. वर्ष २०१४ में वे विदिशा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से दोबारा लोकसभा की सांसद निर्वाचित हुई हैं और उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. भाजपा में राष्ट्रीय मन्त्री बनने वाली पहली महिला सुषमा के नाम पर कई रिकॉर्ड दर्ज़ हैं. वे भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता बनने वाली पहली महिला हैं, वे कैबिनेट मन्त्री बनने वाली भी भाजपा की पहली महिला हैं, वे दिल्ली की पहली महिला मुख्यमन्त्री थीं और भारत की संसद में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार पाने वाली पहली महिला भी वे ही हैं. वे दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और देश में किसी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने की उपलब्धि भी उन्हीं के नाम दर्ज है.
कीर्तिमान एवं उपलब्धियां
१९७७ में ये देश की प्रथम केन्द्रीय मन्त्रिमंडल सदस्या बनीं, वह भी २५ वर्ष की आयु में.
१९७९ में २७ वर्ष की आयु में ये जनता पार्टी, हरियाणा की राज्य अध्यक्षा बनीं.
स्वराज भारत की किसी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी की प्रथम महिला प्रवक्ता बनीं.
इनके अलावा भी ये भाजपा की प्रथम महिला मुख्य मंत्री, केन्द्रीय मन्त्री, महासचिव, प्रवक्ता, विपक्ष की नेता एवं विदेश मंत्री बनीं.
ये भारतीय संसद की प्रथम एवं एकमात्र ऐसी महिला सदस्या हैं जिन्हें आउटस्टैण्डिंग पार्लिमैण्टेरियन सम्मान मिला है. इन्होंने चार राज्यों से ११ बार सीधे चुनाव लडे.
इनके अलावा ये हरियाणा में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की चार वर्ष तक अध्यक्षा भी रहीं.
२०१४ के लोकसभा चुनाव में वे मध्य प्रदेश की विदिशा सीट से लोकसभा की सदस्या चुनी गयीं. १९७५ में उनका विवाह स्वराज कौशल के साथ में हुआ था. कौशल जी छह साल तक राज्यसभा में सांसद रहे इसके अलावा वे मिजोरम प्रदेश के राज्यपाल भी रहे. स्वराज कौशल अभी तक सबसे कम आयु में राज्यपाल का पद प्राप्त करने वाले व्यक्ति हैं. सुषमा स्वराज और उनके पति की उपलब्धियों के ये रिकार्ड लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज़ करते हुए उन्हें विशेष दम्पत्ति का स्थान दिया गया है. स्वराज दम्पत्ति की एक पुत्री है जो वकालत कर रही हैं. हरियाणा सरकार में श्रम व रोजगार मन्त्री रहने वाली सुषमा अम्बाला छावनी से विधायक बनने के बाद लगातार आगे बढ़ती गयीं और बाद में दिल्ली पहुँचकर उन्होंने केन्द्र की राजनीति में सक्रिय रहने का संकल्प लिया जिसमें वे अंत तक सक्रिय थीं.
६७ साल की आयु में ६ अगस्त, २०१९ की रात ११.२४ बजे सुषमा स्वराज का दिल्ली में निधन हो गया.