हम तो मुफ्त में
हो रहे है बदनाम।
जबकि हमारा तो
लेना देना ही नही।
हां कसूर इतना है कि,
रोज देखता हूँ उन्हें।
अपने घर की छत से उन्हें।।
जो न रोज देखते उन्हें,
तो क्या वो इतनी सजती सभारती?
फिर न करे कोई तारीफ सुंदरता की,
तो सुंदरता वो किस काम की।
इसलिए तो श्रंगार करने का रूप उन्हें जो दिया है।
देखकर उन्हें दुख दर्द और थकावट मिट जाती है।
और मुरझाया चेहरा भी
एक दम से खिल जाता है।।
चाहात की सोच अपनी अपनी होती है।
दिल में प्यार हो न हो
पर सुंदरता की कदर होती है।
बहुत कम होंगे लोग
जो सुंदरता की कदर न करते हो।
इसलिए हर पुरुष के जीवन मे एक नारी होती है।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।00