दूर-दूर तक जिंदगी के आखरी नजारे देख रहा हूँ,
बीमारी की हालत में जाते हुए लम्हें देख रहा हूँ।
हर शख्स चेहरे की किताब नहीं,जिसे तुम पढ़ लो,
अपने दर्द की नजाकत में मौत के जर्रे देख रहा हूँ।
वो एक फरिश्ता आएगा आसमां से,ले जाने मुझे,
उसी के आने के इंतजार में जाते पहरे देख रहा हूँ।
जिंदगी से जाते-जाते भला क्या शिकवा करना,
राख का ढेर होने की चाह में सदमें देख रहा हूँ।
चाहे जला देना या मजार बना देना, मेरी याद में,
मैं तो बस मौत के सफर में, कुछ रस्में देख रहा हूँ।
जिस जिसने जो दिया,उसका वापस लौटा दिया,
बस खुद का यहाँ,नफा-मुनाफा होते देख रहा हूँ।
#मनीष कुमार ‘मुसाफिर’
परिचय : युवा कवि और लेखक के रुप में मनीष कुमार ‘मुसाफिर’ मध्यप्रदेश के महेश्वर (ईटावदी,जिला खरगोन) में बसते हैं।आप खास तौर से ग़ज़ल की रचना करते हैं।