सहा जो उम्र भर,वही अजाब लिख रही हूं मैं,
डूबे अश्कों में वक्त की किताब लिख रही हूं मैं।
न जानेगा कभी दिया तूने मुझे क्या-क्या,
मिले जो खार थे,उन्हें गुलाब लिख रही हूं मैं।
पढ़ेगा क्या मुझे कोई सफों में जिंदगी के अब,
हवाओं के परों पर तो निसाब लिख रही हूं मैं।
हुआ जब इल्म,प्यार बुलबुला हवा का सा तेरा
कि आईने के अक्स को सराब लिख रही हूं मैं।
सुना जबसे,लगा पीने तू दर्द रकीबों के,
निगाहे अश्क को तभी शराब लिख रही हूं मैं।
रही काबिज वो लम्स उम्र भर मिरे जहन पर यूं,
कि ख्याले मर्ग में भी खुद शबाब लिख रही हूं मैं।
#वंदना मोदी गोयल
परिचय : वंदना मोदी गोयल, फरीदाबाद में रहती हैं। शिक्षा एमए(हिन्दी)और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है।प्रकाशित कृतियों में उपन्यास ‘हिमखंड,’छठापूत’ सहित सृजन सागर कथा संग्रह,साझा संकलन आदि हैं। आपकी साहित्यिक उपलब्धियों में पिरामिड शीरी सम्मान, काव्य गौरव सम्मान,सारस्वत सम्मान,
साहित्य रतन सम्मान और मुक्तक सम्मान प्रमुख हैं,साथ ही आप मंच पर काव्य पाठ भी करती हैं। अच्छा साहित्य पढ़ना और पुराने गाने सुनना आपका शौक है।