Read Time4 Minute, 29 Second
भियाओन नमस्ते,मैं क्या केरिया था कि…अभी वैसे ही अपन लोगों का दिमाग मोदी जी ने जबरन नोटबंदी करके खराब कर दिया,पर क्या करें,अपने को देशभक्ति का भूत भी चढ़ा है…और इधर नगर निगम वाली भाभी जी के साथ उनके अफसर लोगों ने मिलकर नगर को स्वच्छ करने की मगजमारी अलग चालू करवा दी…अब भिया,ये जो बैंक के लफड़े में अपने मगज की मारामारी होती है न,उससे गुस्सा तो भोत आती है…पर अपन तो साला गुस्सा थूक भी नी सकते रे…साला नगर को स्वच्छ और ‘हेमामालनी’ के सरीका ब्यूटी वाला फूल जो बनाना है..! वैसे भी भोत दिन हो गए,जब एक भिया ने बोला भी था कि,सड़कें जो हैं,वो हेमा मालनी के गाल की तरह चिकनी-चपाट कर देंगे…तो मैं सोच रिया था कि उन्हीं की तरह अपना नगर भी कभी ब्यूटीफुल हो जाए तो मजे आ जाए बावा..! फिर तो अपने भियाओन भी किसी धर्मेन्दर पाजी से कम नी लगेंगे…सई केरिया हूँ न भिया…ये सब तो ठीक है…खैर,बैंकों की लाइन कभी तो खतम होगी ही…लेकिन ऐसा अपन नगर को स्वच्छ और ब्यूटीवाला फूल बन जाने के बारे में कुछ नी के सकते रे…न तो अपन लोग सुधरने को तैयार और न इस स्वच्छता में लगे भियाओन के ‘रंग’ में घुली ‘भ्रष्टाचार की भंग’ का कभी कुछ हो सकता है… बाकी जमीनी हकीकत तो नगर को स्वच्छता का ‘तमगा’ मिलने या न मिलने का फैसला होने के बाद ही मालूम पड़ेगी…हाँ भिया… तो अब मैं मुद्दे की बात पे आ रिया हूं…कहीं चाय की ‘नाट’ मिले तो बताना…साला अब तो मैं उसकी ‘नाक’ ही `सुर्पणखा की तरह’ काट डालूंगा…हां यार,परेशान करके धर दिया..!चाय की नाट…चाय की नाट…हाँ नी तो…वो भिया हुआ यूं कि,अपन गए थे एक साथी के बड्डे सेलिब्रेशन में…अब वहां हुआ यूं कि,पेले तो केक कटवाया…वहां भी साला केक कटा वो तो ठीक,लेकिन ये जो खाने वाला केक आज-कल थोबड़े पर लगाने का नया-नया सीजन चालू हुआ है,वो अपने तो पल्ले ही नी पड़ता…चलो फिर भी सबकी खुशी में अपना खुश…(अब इसका मतलब मत पूछना!!)केक खाया,खिलाया और पोता-पुताई सब हो गई…बधाई-वदाई सब दे दी…फिर उसके बाद नम्बर आया नास्ते का…वो भी अपन ने लपक के किया…थोड़ी देर बैठा-बाठी के बाद बिदाई की बेला आ गई…अब अपन निकल ही रहे थे कि,एक भिया ने चाय की ‘चम्मच’ पकड़ा दी…अपन ठेरे बीजी आदमी…और सई बात ये है कि,मन भी नी था रे…अपन बोले-नी भिया…फिर कभी बाद में पियेंगे चाय-वाय…उसी समय बीच में जबरन एक भिया छोटे भीम की तरह कूद पड़े…बोले कि-नी भिया अब तो चाय पी के ही जाना पड़ेगी…चाय की नाट लग गई है…मैंने फिर भी मना किया…नी भिया अभी मन नी है…फिर क्या था,दो-चार भियाओन एक साथ बोलने लगे-नी भिया अब पी ही जाओ…चाय की नाट लग गई…अच्छी नी रेती…अब ये ‘नाट की बीमारी’ अपने शहर में ही ज्यादा पाई जाती है…उस वकत इतनी चिढ़ छूटी न वो साली ‘नाट’ पे,कि बस…अब तभी से अपन ने पिरण मतलब पक्की ठान ली,के ये ‘नाट’ जब भी कईं मिलेगी,उसकी ‘नाक’ ही काटना है…भियाओनों,तुमको भी कईं टकरा जाए तो बताना…उचित इनाम दूंगा…न रहेगी ‘नाट’ और न बचेगी उसकी ‘नाक’…बस भिया अब चलते हैं…भोत देर हो गई…फिर मिलेंगे चलते-फिरते…l
#रोहित पचोरिया ‘इंदौरी’
Post Views:
488