नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
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उसके शहर से गुजरते हुए,
मैं उसके वादे लौटा आया।
जिस जगह वो मुझसे मिलती थी,
वहाँ से अपने निशां मिटा आया।
उसके शहर से गुजरते हुए,
मैं हँसते हुए उसे विदाई दे आया।
हँसते हुए अब जीवन जिये वो
मैं आँशुओ को गले लगा आया।
उसके शहर से गुजरते हुए,
मैं उसके धोखे भूला आया।
अब कोई और ना धोखा खाये।
धोखे का उसका मुखोटा उठा लाया।
अब किसी को धोखा ना देगी वो,
मैं उससे ये वादा ले आया।
उसके शहर से गुजरते हुए,
अपने सपने वही मैं छोड़ आया।
उसके शहर से गुजरते हुए,
मैं खुद को वही पर छोड़ आया।
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