जब भी रहूँ दुख में तब,
मैं इसको गले लगाता हूँ..
खुश होता हूँ जब भी मैं,
इसे होंठों से लगाता हूँ।
यही प्रतिपल है मेरे आलिंगन
की अधिकारी,
मेरी कलम ही है असल में,मेरी
प्रेमिका प्यारी।
शब्द अनेक हैं अंदर मेरे,
मोतियों से बिखरे पड़े..
माला बनाकर,मेरी कलम
उन्हें सँजोती है।
और कभी जब कार्यक्षेत्र में,
होता हूँ कमजोर..
बनकर ये सम्बल,
मुझको शक्ति देती है।
प्राणदायिनी इस कलम का,
मैं सदा रहूंगा आभारी।
यही प्रतिपल है मेरे आलिंगन
की अधिकारी..
मेरी कलम ही है असल में,मेरी
प्रेमिका प्यारी।।
#जय रामटेके ‘दाम्यंत्यायन’
परिचय : जय रामटेके ‘दाम्यंत्यायन’ बैहर तहसील (जिला बालाघाट)में रहते हैं। करीब 7 वर्ष से लेख, कविताएँ,लघुकथा इत्यादि लिखने में सक्रिय होकर वर्तमान में मानवशास्त्र,पुरातत्व तथा दर्शन के विद्यार्थी हैं। अपने गृहक्षेत्र में संस्था के माध्यम से सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं।