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हर कोशिश मेरी नाकाम हुई जाती है
बस यूँ ही सुबह से शाम हुई जाती है
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खुद-ब-खुद आ गए हैं जलने परवाने
शमा बिना वजह बदनाम हुई जाती है
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जबसे इस कैद में तू आ गया है साथ मेरे
सज़ा मेरे लिए ईनाम हुई जाती है
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रोज़ होने से मुलाकात, कशिश घटने लगी
बात जो खास थी अब आम हुई जाती है
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मैं तेरी बेवफाईयों का गिला किससे करूँ
मेरी वफा मुझपे इल्ज़ाम हुई जाती है
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#भरत मल्होत्रा
परिचय :–
नाम- भरत मल्होत्रा
मुंबई(महाराष्ट्र)
शैक्षणिक योग्यता – स्नातक
वर्तमान व्यवसाय – व्यवसायी
साहित्यिक उपलब्धियां – देश व विदेश(कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा “दीपशिखा सम्मान”, “शब्द कलश सम्मान”, “काव्य साहित्य सरताज”, “संपादक शिरोमणि”
झांसी से प्रकाशित “जय विजय” पत्रिका द्वारा ” उत्कृष्ट साहितय सेवा रचनाकार” सम्मान एव
दिल्ली के भाषा सहोदरी द्वारा सम्मानित, दिल्ली के कवि हम-तुम टीम द्वारा ” शब्द अनुराग सम्मान” व ” शब्द गंगा सम्मान” द्वारा सम्मानित
प्रकाशित पुस्तकें- सहोदरी सोपान
दीपशिखा
शब्दकलश
शब्द अनुराग
शब्द गंगा
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Thu Mar 14 , 2019
हम हैं भक्त श्री राम के, बाकी नहीं है काम के, रामलला है तंबू में , हम आदी तामझाम के।। हमें गर्व है सेना पर , वे नहीं है सैनिक नाम के, राजनीति में मत खींचो , वही बचे हैं काम के ।। इधर उधर की बातें छोड़ो, राजनीति का […]