सेवा शिष्टाचार ही, मानव की पहचान

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archana dube

सेवा शिष्टाचार ही, मानव की पहचान ।
जन प्रत्येक इसी लिए, दिख रहे परेशान ।
दिख रहे परेशान,आचरण अच्छा रखना ।
किये नहीं सत्कार, कहेंगे कैसे अपना ।
‘रीत’‘कहे यह बात,मिलेगाकैसे मेवा ।
अच्छे रखो विचार, करो तुम सबकी सेवा ॥1॥

पक्षी सब आजाद हैं, नभ के छूते छोर ।
दाना पानी कर लिये, पंखों में है जोर ।
पंखों में है जोर, देखते सपने सारे ।
उड़े पूर्व की ओर, साथ में लगते प्यारे ।
‘रीत’ डरे यह देख, जंगलों में नरभक्षी ।
उड़ते देख समूह, गुलेल से मारे पक्षी ॥2॥

नाथ हमारे कह गये, मानव तन अनमोल ।
धन्य करो जीवन सभी, त्यागों मीठे बोल ।
त्यागों मीठे बोल, सत्य की बात निराली ।
सच्चाई अनमोल, नहीं जायेगी खाली ।
‘रीत’ कहे यह बात, ध्यान से सुनले प्यारे ।
गलती को ले मान, कहे यह नाथ हमारे ॥3॥

भाई भाई अब यहां, लड़ना है बेकार ।
फूल बनें कांटे नहीं, रखिये नेक विचार ।
रखिये नेक विचार, आज खुद को समझाओं ।
हो जाओं एक साथ, घर अभी स्वर्ग बनाओं ।
देख यही है ‘रीत’, हटाओ मन से काई ।
ये है घर परिवार, रहो मिल भाई भाई ॥4॥

सपना का भारत बसे, लागे मस्त जहान ।
सही लगे कितना वतन, होता जन कल्याण ।
होता जन कल्याण, बात लागे यह प्यारा ।
भारत अपना देश, सुखों का है परिवारा ।
‘रीत’दे रही साथ, मान यह बतिया सजना ।
सदैव करो विकास, सजे भारत का सपना ॥5॥

पूरब सूरज की दिशा, दिखे किरण के साथ ।
किरणें आती जब धरा, ओस न आये हाथ ।
ओस न आये हाथ, धूप की तेजी बढ़ती ।
सूख चलें सब बूंद, देख दोपहरी चढ़ती ।
‘अर्चना दुबे’ सुबह, सभी रटते अपना रब ।
दोपहरी में सूर्य, नहीं दिखता जब पूरब ॥6॥

सारा नभ बादल ढ़के, धूप कहां से आय ।
ठंडी ऐसी लग रही, कम्पन बढ़ती जाय ।
कम्पन बढ़ती जाय, धूप लगती है प्यारी ।
बदरी छँटती देख, मिले राहत फिर भारी ।
‘अर्चना दुबे’सेंक, धूप का सुख दें न्यारा ।
लुभा रही रवि किरण, दिखा हाल कहा सारा ॥7॥

बात करों सोचो जरा, उस पर करो विचार ।
इक दिन यही आयेगा, कर दूंगा इंकार ।
कर दूंगा इंकार, यही था मैं समझाता ।
बार बार यह बात, तुम्हें न मैं बतलाता ।
‘अर्चना’ कर भगवन, पड़ें ना कोई लोचा ।
फिर करना ना गलत, काम जो तुमने सोचा ॥8॥

आओ दिन पावन बड़ा, करलो सबसे मेल ।
अवसर ऐसा मिल रहा, खेलो अब मिल खेल ।
खेलो अब मिल खेल, अनोखा अवसर पाये ।
करो न सोच विचार, सफलता ही मन भाये ।
‘रीत’ कहे यह बात, सीखने तुम ही जाओ ।
रुको नहीं तुम आज, सीख करके ही आओ ॥9॥

राम मिले कृष्णा मिले, मिलते दीनानाथ ।
आस लगाये हूँ पड़ी, राम हमारे साथ ।
राम हमारे साथ, बोलिये मिल जयकारा ।
ऐसे दीनानाथ, लगाओ मिलकर नारा ।
‘रीत’ कहे दिन रात, हृदय में वहि फूल खिले ।
पूजा करना साथ, शीघ्र अब प्रभु राम मिले ॥10॥

सैनिक सीमा पर खड़े, लड़ते है दिन रात ।
मान देश का है बढ़ा,करते हैं सब बात ।
करते हैं सब बात, दिखाते चौड़ा सीना ।
अरि का कर संहार, तभी जल को है पीना ।
‘रीत’ कहे यह बात, हौसला रखना दैनिक ।
दिखलाते औकात, वीर भारत के सैनिक ॥11॥

परिचय-

नाम  -डॉ. अर्चना दुबे

मुम्बई(महाराष्ट्र)

जन्म स्थान  –   जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा –  एम.ए., पीएच-डी.

कार्यक्षेत्र  –  स्वच्छंद  लेखनकार्य

लेखन विधा  –  गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।

कोई प्रकाशन  संग्रह / किताब  –  दो साझा काव्य संग्रह ।

रचना प्रकाशन  –  मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से  मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।

  • काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।

  • कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।

  • दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।

  • अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।

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