कोर्ट ने न्यायिक सेवा समिति को निर्देश दिया-वह हिन्दी में दाखिल संजय कुमार की याचिका का अंग्रेजी में अनुवाद करने में मदद करे।
नई दिल्ली |सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर हिन्दी अड़ गई है। दशकों पहले जिस सुप्रीम कोर्ट ने जाने-माने राजनेता राज नारायण को हिन्दी में बहस करने की इजाजत नहीं दी थी,वही सुप्रीम कोर्ट अब हिन्दी में दाखिल एक याचिका का खुद अंग्रेजी अनुवाद करा रही है। बिहार के एक याचिकाकर्ता ने न सिर्फ हिन्दी में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है,बल्कि उसका कहना है कि वह याचिका का अनुवाद नहीं कराएगा,कोर्ट खुद अनुवाद कराए। कोर्ट ने न्यायिक सेवा समिति को निर्देश दिया है कि,वह हिन्दी में दाखिल संजय कुमार की याचिका का अंग्रेजी में अनुवाद करने में मदद करे। संजय की विशेष अनुमति याचिका बिहार में जिला जजों की इंट्री लेवल परीक्षा के बारे में है,जिसका विज्ञापन 2015 में निकला था। संजय ने याचिका के साथ एक अर्जी भी दाखिल की,जिसमें विशेष तौर पर हिन्दी में याचिका दाखिल करने की अनुमति मांगी है।
याचिका पर हिन्दी में विचार का आग्रह करते हुए संजय ने संविधान के अनुच्छेद 348,अनुच्छेद 350,351 व 51(क) आदि का हवाला दिया है। कहा है कि,भारत की राजभाषा हिन्दी का प्रचार बढ़ाना और उसका विकास करना आवेदक के साथ-साथ भारत के प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है। भारत की राजभाषा हिन्दी के विकास को रोकना राजद्रोह है,जो भारतीय दंड संहिता की धारा 124(क) के तहत दंडनीय अपराध है। इस अर्जी के बावजूद सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने याचिका सुनवाई के लिए पंजीकृत नहीं की और उसे हिन्दी में होने के कारण त्रुटिपूर्ण करार दिया। रजिस्ट्री ने संजय को पत्र भेजकर कहा कि,सुप्रीम कोर्ट रूल 2013 के आदेश 8 नियम 2 के मुताबिक अंग्रेजी के अलावा किसी और भाषा में दाखिल याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता। संजय से अनुवाद देने को कहा गया,लेकिन संजय ने जवाब भेजकर कहा कि उच्चतम न्यायालय को ही अपने अनुवादक से भारत संघ की राजभाषा हिन्दी में दाखिल एसएलपी का अंग्रेजी अनुवाद कराने का दायित्व है,वह अंग्रेजी अनुवाद नहीं देगा। यह याचिका गत फरवरी में चैम्बर जज न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव ने समक्ष लगी। उन्होंने संजय की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी को अनुवाद कराने में मदद का आदेश दिया और रजिस्ट्री से कहा कि खामी दूर होने के बाद याचिका सुनवाई पर लगाई जाए।
संजय ने याचिका में कहा है कि,बिहार सरकार के कानून जेआर 157 के अनुसार बिहार के न्यायालयों की भाषा हिन्दी है। संविधान के 343 अनुच्छेद में कहा गया है कि,भारत संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। पूर्व की भांति 15 वर्ष तक अंग्रेजी प्रयोग होती रहेगी। 15 वर्ष 1965 में पूरे हो गए। संविधान लागू होने के 15 वर्ष बाद भारत का कोई भी काम सिर्फ अंग्रेजी में नहीं होना चाहिए। याचिका में संविधान सभा में महात्मा गांधी के भाषण का हवाला दिया गया है,जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि देशवासियों पर अंग्रेजी थोप देंगे तो देशवासी गूंगे हो जाएंगे और फिर से देश गुलाम हो जाएगा।
साभार— वैश्विक हिन्दी सम्मेलन