नोटबंदी के बाद अब नगदबंदी ?

0 0
Read Time3 Minute, 49 Second
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक / लेखकों का है, मातृभाषा.कॉम का नहीं।
हमारी सरकार की नाव नोटबंदी के भंवर में फंसती ही चली जा रही है। ऐसा लग रहा है कि आजकल उसके पास कोई काम ही नहीं है, सिवाय इसके कि वह नए नोटों के लिए रोज़ मार खाती रहे, नए और पुराने नोटों के जखीरों को पकड़ती रहे, भ्रष्टाचारी बैंकरों पर जांच और मुकदमे चलाए, 40 करोड़ बैंक खातों की जांच करवाए और जन-धन खाताधारियों को नई नैतिकता सिखाए। अब जबकि सारा काला धन सफेद हो चुका है और जितना आयकर पहले मिलता था, उसके भी घटने की आशंका हो रही है, हमारी सरकार अपनी आंखें रगड़ रही है, हाथ मल रही है और अपने बाल नोंच रही है। उसे समझ नहीं पड़ रहा है कि अब वह कौनसी बंडी बदले और कौनसा बंडल मारे? डूबती नाव को तिनके का सहारा ! अब वह नगदबंदी के तिनके को पकड़कर लटक रही है। नगदबंदी का दूर-दूर तक कोई जिक्र तक नहीं था, 8 नवंबर की महान घोषणा के वक्त ! हमारे प्रचारमंत्री को क्या पता था कि नोटबंदी इस बुरी तरह फेल हो जाएगी। अब वे कालाधन भूल गए। किसी ने उन्हें नगदबंदी की पुड़िया पकड़ा दी। अब वे नगदबंदी का चूरण सबको बांट रहे हैं। यह बदहजमी का चूरण वे उनको भी खिला रहे हैं, जो भूखे पेट सोते हैं। उन्हें यह पता ही नहीं कि दुनिया के अत्यंत सुशिक्षित और समृद्ध देशों में भी नगदबंदी नहीं है। वहां भी नगद का व्यवहार खूब होता है और यांत्रिक लेन-देन के बावजूद भारत से कई गुना भ्रष्टाचार वहां व्याप्त है। जरा बताएं कि अभी वेस्टलैंड हेलिकाॅप्टरों में 300 करोड़ की रिश्वत या बोफर्स में 62 करोड़ की रिश्वत क्या नगद में ली गई थी? यह नोटबंदी और नगदबंदी हमारे बैंकों और आयकर विभाग को भ्रष्टाचार के सबसे बड़े गढ़ बना देगी। 25 करोड़ जन-धन खातेधारी याने उनके 100 करोड़ परिजन (एक घर में चार सदस्य), सभी पर भ्रष्ट होने की तोहमत है याने भ्रष्टाचार ही राष्ट्रीय शिष्टाचार बन गया है। कालेधन और भ्रष्टाचार का इलाज न नोटबंदी से होगा, न नगदबंदी से। ये दोनों दांव उल्टे पड़ गए हैं। नोटबंदी ने कालाधन बढ़ा दिया है और नगदबंदी के चलते आम आदमी की जिंदगी दूभर हो रही है। आपने पहाड़ खोद डाला लेकिन उसमें से आप चुहिया भी नहीं निकाल सके।
लेखक परिचय: डॉ. वेदप्रताप वैदिक हिन्दी के वरिष्ट पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, पटु वक्ता एवं हिन्दी प्रेमी हैं। उनका जन्म एवं आरम्भिक शिक्षा मध्य प्रदेश के इन्दौर नगर में हुई। हिन्दी को भारत और विश्व मंच पर स्थापित करने के की दिशा में सदा प्रयत्नशील रहते हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

सांस्कृतिक अवमूल्यन

Thu Dec 15 , 2016
हरीश शर्मा यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक / लेखकों का है, मातृभाषा.कॉम का नहीं। वर्तमान भारत में अधिकांष भारतीयों को इस बात का अफसोस रहता है कि भारतीयों […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।