मेरा देश आज
दो नामों में बँट गया है
भारत और इण्डिया
भारत पूर्वीय दैवीय गुणाच्छादित सभ्यता का प्रतीक
और इण्डिया पाश्चात्य सभ्यता का.
भारत इण्डिया के भार से
दबा जा रहा है
अधोपतन के गर्त में
डुबाया जा रहा है.
भारत की सात्विक संस्कृति की छाती पर
इण्डिया की तामसिक वृत्ति
चढ़कर बैठ गई है
और उसे सौतेले भाई की भाँति
चौखट से बाहर
निष्कासित कर रही है.
एक ओर जहाँ इण्डिया
दिन दूना रात चौगुना
उन्नति के शिखर पर
पहुँच रहा है,
वहीं भारत
सहमा-सा, ठिठका-सा
दम तोड़ता हुआ
घुटनों पे खड़ा रह गया है.
जिस भारत में दूध की नदियाँ बहती थीं
वहाँ के नागरिक को आज कहीं-कहीं
स्वच्छ पानी भी दुर्लभ है
इण्डिया का निवासी
पेप्सी, कोक, बियर की बहुलता से
सराबोर है.
भारत आज भी
पगडंडी पर
बैलगाड़ियों में भ्रमण करता है
इण्डिया में कारों की कमी नहीं
एक्सप्रेस हाइवे पर
फर्राटे से
मार्ग में आने वाले
किसी भी अनचाहे व्यवधान को
कुचलती चलती है.
इण्डिया का निवासी
अँग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच पढ़ता है
भारत का
रोजी-रोटी के चक्कर में
पेट की आग का ईधन जुटाने
तन ढाँकने
मज़दूरी-मशक्कत करने में
व्यस्त रहता है
क ख ग की शिक्षा से भी
दूर छिटक जाता है.
इण्डिया की महिलाएँ
चुस्त-दुरुस्त फैशन में
शिखरोन्मुख हैं
सुंदरियाँ मिस यूनीवर्स, मिस वर्ल्ड के पद पर
पदासीन हैं
पर भारत की नारी
अभी भी उत्पीड़ित है.
इण्डिया में
दिखावे के चक्कर में
लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं
पर भारत में
करोड़ों लोगों को
दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती है.
भारतीय साहित्य, संस्कृति दम तोड़ रही है
और पश्चिमीय सभ्यता जोरों से पनप रही है
लोकगीत, नृत्य, कला
अपने ही घर में सिर झुका
लज्जित-से कोने में खड़े हैं
और इण्डिया के पाँव
पाश्चात्य धुन पर थिरक रहे हैं.
भारत दाने-दाने और पैसे-पैसे का मोहताज़ है
और इण्डिया काले धन से मदहोश है
इण्डिया पर्याय है ऐय्याशी का
तो भारत संघर्ष का.
इण्डिया और भारत के बीच
एक गहरी खाई खुद गई है
जो दिनों-दिन अंधे कुएँ-सी
गहराती जा रही है.
भारतीय इंडियन बन
अपनी मातृभाषा को परे धकेल
पराई भाषा में,
उधार मिली संस्कृति में
सुखानुभूति अनुभव करता है
यह कैसी विडम्बना है!
एक ज़माने का इतना समृद्धशाली भारत
माँगी हुई संस्कृति के बल पर
अपने को ऊँचा दिखाने के विकृत प्रयत्न पर
दिखता है कितना दारुण, हास्यास्पद.
जो देश था हर गौरव से भरपूर
वही उन सब को तुच्छ मान
नकली हीरों की चमक से प्रभावित
गलत सिद्धांतों की बैसाखियाँ लगाकर
भौतिकता की अंधाधुंध दौड़ में शामिल
बदहवास भागता जा रहा है.
काश! भारत
स्वयं के नाम से ही जाना जाता
उसका अँग्रेजी अपभ्रंश रूपांतरण न होता
भारत भारत ही रहता इंडिया न बनता.
काश! आज भी भारत जाग जाए
अपना मूल्य पहचाने
संकट के कगार पर खड़ा भारत
अतीत के असंख्य अनमोल रत्नों की
धूल झाड़-पोंछ कर
उन्हें चमका-चमका कर
अपने बूते पर
विश्व में अपना तिरंगा फहराए.
जय भारत, जय भारती
जय भारत, जय भारती.
#डॉ. स्नेह ठाकुर